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दिल्ली की 58वीं श्री जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: त्यागराज नगर में श्रद्धालुओं का भव्य मिलन

दिल्ली में फिर गूंजेगा ‘जय जगन्नाथ!’ – त्यागराज नगर में 58वीं रथ यात्रा 2025 का महासंगम!

🌼 जैसे ही रथ यात्रा करीब आती है: भक्ति का जोश फिर से जाग उठता है

जैसे-जैसे 2025 की रथ यात्रा पास आ रही है, भक्तों का उत्साह बढ़ता जा रहा है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ की अपने भक्तों के बीच उपस्थिति का उत्सव है। दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर पिछले 58 वर्षों से इस पावन परंपरा को निभा रहा है।

इस साल, हम 58वीं भव्य रथ यात्रा का आयोजन कर रहे हैं। यह मौका न केवल आस्था का है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी उत्सव है।

🕉️ रथ यात्रा का इतिहास: एक परंपरा जो समय को पार कर गई

रथ यात्रा की शुरुआत ओडिशा के पुरी से हुई थी, जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की शोभायात्रा होती है। कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ पहले नीलमाधव के रूप में पूजे जाते थे। बाद में उनकी मूर्ति एक चमत्कारी लकड़ी से बनाई गई, जिसे भगवान विश्वकर्मा ने आकार दिया था।

यह यात्रा भगवान के भक्तों से मिलने की इच्छा को दर्शाती है। मंदिर की दीवारों से बाहर आकर भगवान सभी जाति-धर्म के लोगों को समान रूप से दर्शन देते हैं।

ट्रांजिशन वर्ड्स: साथ ही, इसके पीछे एक आध्यात्मिक गहराई भी छिपी है। वास्तव में, यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

रथ यात्रा का इतिहास
पुरी की रथ यात्रा का इतिहास अनूठा है. ज्येष्ठ पूर्णिमा पर स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा 'बीमार' होकर 15 दिन एकांतवास में रहते हैं. स्वस्थ होने पर वे अपने मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाने के लिए नए बने रथों पर निकलते हैं. यह यात्रा इसलिए खास है क्योंकि भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ नगर भ्रमण करते हैं. इस दौरान सभी भक्त उनके दर्शन कर पाते हैं, जो समानता का प्रतीक है. राजा भी पारंपरिक रूप से झाड़ू लगाकर सेवा करते हैं. यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और प्राचीन परंपरा का जीवंत प्रदर्शन है.
रथ यात्रा के 9 विशेष दिन
1.नेती उत्सव – रथों की शुद्धि और सजावट 2. रथ यात्रा – भगवान जगन्नाथ की भव्य सवारी 3. हेरा पंचमी – देवी लक्ष्मी का अद्भुत संवाद हर दिन से जुड़ी कथा, परंपरा और भावनाओं को जानने के लिए पूरा ब्लॉग ज़रूर पढ़ें! ....नीचे स्क्रॉल करें और जानिए, क्यों ये 9 दिन भक्तों के लिए सबसे पावन माने जाते हैं!

रथ यात्रा का इतिहास कुछ खास बातों से अनोखा है:

  • भगवान का ‘बीमार’ होना: यह यात्रा इसलिए अनोखी है क्योंकि इससे पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को ‘अनसर’ या ‘नवयौवन’ काल में रखा जाता है. माना जाता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा को स्नान यात्रा के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं और लगभग 15 दिनों तक एकांतवास में रहते हैं. इस दौरान भक्तों को उनके दर्शन नहीं मिलते. इस अवधि के बाद ही वे स्वस्थ होकर अपने मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाने के लिए रथ पर निकलते हैं. यह अवधारणा ही इसे बाकी धार्मिक यात्राओं से अलग बनाती है.
  • रथों का निर्माण: हर साल नए रथ बनाए जाते हैं, जो नीम की लकड़ियों से तैयार किए जाते हैं. ये रथ किसी साधारण वाहन की तरह नहीं होते, बल्कि इन्हें देवताओं का वास माना जाता है. इनके नाम और ध्वज भी पारंपरिक होते हैं – भगवान जगन्नाथ का रथ ‘नंदीघोष’, बलभद्र का ‘तालध्वज’ और सुभद्रा का ‘देवदलन’.
  • तीनों भाई-बहन की यात्रा: यह इकलौती ऐसी यात्रा है जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं. यह भाई-बहन के प्रेम और परिवार के साथ यात्रा का संदेश देती है.
  • गुंडिचा मंदिर का महत्व: भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर को अपनी मौसी का घर मानते हैं और वहीं नौ दिनों तक वास करते हैं. इसे ‘जन्माष्टमी’ भी कहा जाता है, जहाँ से भगवान वापस अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं.
  • सार्वजनिक दर्शन: रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर निकलते हैं और सड़कों पर आते हैं, जिससे हर भक्त, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो, उनके दर्शन कर पाता है. यह समानता का एक बड़ा प्रतीक है.
  • शाही परंपरा: पुरी के गजपति महाराजा पारंपरिक रूप से रथ यात्रा से पहले ‘छेरा पहंरा’ (सोने की झाड़ू से रथ के सामने की जगह को साफ करना) की रस्म निभाते हैं. यह राजा और भगवान के बीच के संबंध को दर्शाता है.

संक्षेप में, पुरी की रथ यात्रा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भगवान के मानवीय स्वरूप, भाई-बहन के प्रेम, समानता और सदियों पुरानी आध्यात्मिक परंपरा का एक अनूठा और जीवंत प्रदर्शन है.

🗓️ रथ यात्रा के 9 विशेष दिन और उनकी गूढ़ कहानियाँ

 

1. देवस्नान पूर्णिमा (11 जून 2025): भगवान का वार्षिक स्नान

इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है।
इस जल में गंगाजल, केसर, चंदन, तुलसी, गुलाब जल आदि मिलाए जाते हैं।
🔹 कहानी: स्नान के बाद भगवान बीमार हो जाते हैं, जिसे ‘अनवसर’ कहा जाता है – यह मानवीकरण की अनूठी परंपरा है।

2. अनवसर और दर्शन विराम (12–25 जून): देवता क्यों हो जाते हैं अदृश्य?

स्नान के बाद देवता बीमार हो जाते हैं और 14 दिनों तक विश्राम करते हैं।
इस दौरान भक्तों को दर्शन नहीं होते – इसे ‘अनवसर’ कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं और लोकमान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा को हुए भव्य स्नान के बाद, जिसमें देवताओं को 108 घड़े सुगंधित जल से स्नान कराया जाता है, उन्हें बुखार आ जाता है और वे “बीमार” पड़ जाते हैं. इस अवधि में, उन्हें मंदिर के गर्भगृह में एक विशेष एकांतवास में रखा जाता है, जहाँ उनकी देखभाल की जाती है.

🔹 रहस्य: यह मानव और ईश्वर के बीच के रिश्ते को दर्शाता है – कि भगवान भी हमारे जैसे अनुभव करते हैं।

3. नेत्रोत्सव (26 जून 2025): आँखों का पुनर्जन्म

स्नान के बाद भगवान की आँखें धुंधली हो जाती हैं।
इस दिन विशेष ‘नेत्र’ बनाकर मूर्तियों में लगाए जाते हैं।

🔹 कथा: यह भगवान के ‘नवीन दृष्टिकोण’ को दर्शाता है – जैसे हर भक्त उन्हें एक नई भावना से देखता है।

4. रथ यात्रा (27 जून 2025): जब भगवान खुद यात्रा पर निकलते हैं

तीनों रथ – नंदीघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र) और दर्पदलन (सुभद्रा) – विशाल भक्त समूहों द्वारा खींचे जाते हैं।

🔹 विशेष: भक्त मानते हैं कि जो रथ खींचता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

5. गुँडिचा यात्रा (27 जून को ही): माँ के मायके की ओर यात्रा

भगवान का रथ उनके मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) की ओर बढ़ता है, जहाँ वे 7 दिन ठहरते हैं।

यात्रा का उद्देश्य: इस दिन, तीनों देवता अपने मौसी के घर, जिसे गुँडिचा मंदिर कहा जाता है, की ओर प्रस्थान करते हैं. यह यात्रा भगवान के वार्षिक अवकाश और भक्तों को सहज दर्शन देने का प्रतीक है.

भव्य दृश्य: लाखों भक्त इस दिन पुरी में एकत्र होते हैं. वे विशाल रथों को पवित्र रस्सी से खींचते हैं, जिसे खींचना अत्यंत पुण्य का कार्य माना जाता है. यह भक्ति, उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा एक अद्भुत दृश्य होता है. ढोल-नगाड़ों और जयकारों से पूरा वातावरण गूँज उठता है.

🔹 मान्यता: यह संसार में भगवान की यात्रा का प्रतीक है – जहाँ वे सबके दुःख हरते हैं।

6. हेरा पंचमी (1 जुलाई 2025): माँ लक्ष्मी का क्रोध

जब भगवान बिना देवी लक्ष्मी को बताए गुंडिचा चले जाते हैं, तो वे क्रोधित हो जाती हैं और उनके पीछे जाती हैं।हेरा पंचमी रथ यात्रा के पाँचवे दिन मनाई जाती है. इस दिन भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी लक्ष्मी, जो उन्हें मुख्य मंदिर में अकेला छोड़कर गुंडिचा मंदिर जाने से नाराज हैं, अपने पति को खोजने गुंडिचा मंदिर जाती हैं. क्रोध में वे भगवान जगन्नाथ के रथ का एक हिस्सा तोड़ देती हैं और फिर वापस लौट जाती हैं. यह मानवीय प्रेम और मान-मनौवल की एक अनोखी लीला है.

🔹 लोककथा: माँ लक्ष्मी रथ को हिला देती हैं और प्रतीकात्मक रूप से मंदिर का एक भाग तोड़ देती हैं!

❓ क्या जगन्नाथ माँ लक्ष्मी से डरते हैं?
👉 हाँ, यह मान्यता है कि वे बाद में देवी को मना कर वापस घर लाते हैं।

7. बाहुड़ा यात्रा (5 जुलाई 2025): भगवान की वापसी

7 दिन बाद, भगवान अपने मंदिर लौटते हैं। यह वापसी बाहुड़ा कहलाती है।

🔹 कहानी: वापसी के समय भक्त मार्ग में भक्ति गीत, नृत्य और भोग से स्वागत करते हैं।

8. सुना वेश (6 जुलाई 2025): भगवान का स्वर्ण श्रृंगार

इस दिन भगवान को 208 किलो सोने के आभूषणों से सजाया जाता है।

🔹 मान्यता: इसे देखना सबसे शुभ माना जाता है – कहा जाता है, यह दर्शन ‘कल्पवृक्ष’ के समान फल देता है।

9. नीलाद्री बिजे (8 जुलाई 2025): वापसी और समर्पण

देवताओं की वापसी पर माँ लक्ष्मी का स्वागत होता है।
वह पूछती हैं: “क्या अब लौट आए?” भगवान उन्हें ‘रसगुल्ला’ देते हैं।

🔹 ओडिशा का रसगुल्ला उत्सव इसी दिन मनाया जाता है।

जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में रथ यात्रा 2025 का भव्य उत्सव

हम जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में इस पावन परंपरा को जारी रखने पर गर्व महसूस करते हैं। हम पुरी की रथ यात्रा की भावना को दिल्ली के अपने प्यारे शहर में लाते हैं। हमारे उत्सव पुरी की बड़ी परंपराओं जैसे ही होते हैं, जिससे दिल्ली के भक्तों को भी इस अनोखे त्योहार का आशीर्वाद और खुशी महसूस होती है। यह हमारी 58वीं रथ यात्रा है, जो इस बात का सबूत है कि हमारी आस्था और परंपरा कितनी मजबूत है।

जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में रथ यात्रा 2025 का पूरा कार्यक्रम (जैसा कि आपको मिली तस्वीर में है):

दिनांकदिनजगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में कार्यक्रम का विवरण
11 जून, 2025बुधवार

देबस्नान पूर्णिमा/स्नान यात्रा:

इस खास दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पवित्र जल से बड़े स्नान कराए जाते हैं। इस स्नान के बाद, देवता 15 दिनों के लिए भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं, जिसे अनवसर काल कहते हैं।

26 जून, 2025गुरुवार

नेत्रोत्सव और नवयौवन दर्शन:

एकांतवास के बाद, देवता वापस आते हैं। उनके नेत्रों का फिर से रंग-रोगन किया जाता है, और वे “नये और जवान” रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। यह भक्तों के लिए बहुत खास दिन होता है जब वे अपने आराध्य को फिर से देखते हैं।

27 जून, 2025शुक्रवार

रथ यात्रा (महापर्व):

यह सबसे बड़ा दिन होता है! भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने बड़े-बड़े रथों पर सवार होकर मंदिर से बाहर निकलते हैं और नगर में भ्रमण करते हैं। हजारों भक्त इन रथों को खींचते हैं, जयकारे लगाते हैं और भजन गाते हुए भगवान के साथ चलते हैं।

01 जुलाई, 2025मंगलवार

हेरा पंचमी:

रथ यात्रा के पांचवें दिन, देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान जगन्नाथ से मिलने मौसी माँ मंदिर जाती हैं, क्योंकि भगवान उन्हें पीछे छोड़ आए थे। यह देवी लक्ष्मी के प्रेम और नाराजगी को दर्शाने वाला एक रोचक अनुष्ठान है।

05 जुलाई, 2025शनिवार

बाहुड़ा यात्रा:

यह देवताओं की अपने मुख्य मंदिर में वापसी की यात्रा है। रथ अपने सफर को पूरा कर वापस जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर लौटते हैं। इस दिन भी भक्त रथों को खींचकर भगवान का स्वागत करते हैं।

06 जुलाई, 2025रविवार

सुना वेश:

बाहुड़ा यात्रा के अगले दिन, देवताओं को उनके रथों पर ही भव्य सुनहरे गहनों से सजाया जाता है। यह भगवान का सबसे शाही और चमकदार रूप होता है, जिसे देखकर भक्त धन्य महसूस करते हैं।

07 जुलाई, 2025सोमवार

आधार पाणा:

इस दिन, देवताओं को उनके रथों पर रहते हुए एक खास मीठा पेय ‘पाणा’ चढ़ाया जाता है। यह देवताओं को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद पाने का अनुष्ठान है, जिसे केवल उनके लिए ही तैयार किया जाता है।

08 जुलाई, 2025मंगलवार

नीलाद्री बिजे:

यह रथ यात्रा उत्सव का आखिरी दिन है। इस दिन देवताओं को धूमधाम और भक्ति के साथ वापस मुख्य मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही रथ यात्रा का भव्य समापन होता है, और भक्त अगले साल का इंतजार करते हैं।

हम सभी भक्तों, परिवारों और जिज्ञासु मन वालों को इन शुभ आयोजनों में शामिल होने के लिए दिल से आमंत्रित करते हैं। यहाँ आकर भक्ति को महसूस करें, पवित्र रथों को खींचने में भाग लें, और इस अविश्वसनीय उत्सव के दौरान त्यागराज नगर में फैली दिव्य ऊर्जा में डूब जाएँ। यह कई दिनों का उत्सव है जहाँ हर दिन का अपना खास महत्व है और हम उस दिन उसी के अनुसार अनुष्ठान करते हैं।

🛕 श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर – दिल्ली की श्रद्धा और संस्कृति का तीर्थस्थल

स्थापना वर्ष: 1968
श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली, राजधानी में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जिसे ओडिया समुदाय द्वारा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के आशीर्वाद से स्थापित किया गया था। यह मंदिर न केवल पूजा-पाठ के लिए बल्कि सांस्कृतिक एकता, समाज सेवा और आध्यात्मिक जागृति के लिए जाना जाता है।

📜 मंदिर का इतिहास

यह मंदिर उस समय बना जब दिल्ली में बसे ओडिया समुदाय को एक ऐसा स्थान चाहिए था जहां वे पुरी की तरह भगवान जगन्नाथ की पूजा और प्रमुख उत्सव मना सकें।
1968 में एक साधारण स्थान से शुरू हुआ यह मंदिर अब भव्य स्वरूप ले चुका है, और हर वर्ष रथ यात्रा, स्नान पूर्णिमा, चंदन यात्रा जैसे त्यौहार पारंपरिक विधियों से मनाए जाते हैं।

🌟 विशेष सुविधाएँ (Facilities)

  • 💧 पेयजल और साफ-सफाई व्यवस्था – मंदिर परिसर में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था और नियमित साफ-सफाई सुनिश्चित की जाती है।

  • 🎥 24×7 CCTV निगरानी – पूरे परिसर की निगरानी के लिए कैमरे लगे हैं ताकि भक्तों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

  • 🚻 स्वच्छ टॉयलेट्स और वॉशिंग एरिया – पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग स्वच्छ शौचालय और हाथ धोने की जगह।

  • 🌳 हरा-भरा और शांति पूर्ण वातावरण – मंदिर परिसर में सुंदर बगीचे और बैठने की सुविधा है।

  • 🎙️ साउंड सिस्टम और लाउडस्पीकर – आरती, भजन और घोषणाओं के लिए उच्च गुणवत्ता वाला ऑडियो सिस्टम।

  • 🧘 सांस्कृतिक हॉल (Subhadra Kala Mandap) – धार्मिक नाटकों, भक्ति संगीत, ओडिसी नृत्य, कीर्तन और कार्यशालाओं के आयोजन के लिए समर्पित हॉल।

🍛 महाप्रसाद – आस्था और स्वाद का संगम

पुरी की परंपरा के अनुसार यहां भी भक्तों को शुद्ध सात्विक महाप्रसाद परोसा जाता है। विशेष अवसरों पर हजारों भक्त प्रसाद का आनंद लेते हैं, जो मंदिर के पुजारियों द्वारा पारंपरिक विधि से तैयार किया जाता है।

🪔 प्रमुख आयोजन और धार्मिक परंपराएँ

  • 🚩 रथ यात्रा – हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को तीनों देवों की रथ यात्रा, विशाल जनसमूह के साथ निकलती है।

  • 🛁 स्नान पूर्णिमा – भगवानों को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है।

  • 🎉 बाल भोग, ओडिसी डांस, और कीर्तन – त्योहारों में भक्तों और बच्चों के लिए सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ।

  • 🔔 रोज़ाना आरती और भजन संध्या – सुबह-शाम आरती, संस्कृत श्लोक और मधुर भजनों के साथ।

📲 डिजिटल जुड़ाव और लाइव दर्शन

अब भक्त मंदिर की शाम की आरती, उत्सव और रथ यात्रा को YouTube चैनल पर लाइव देख सकते हैं। इससे दूर-दराज़ के भक्त भी अपने आराध्य के दर्शन कर पाते हैं।

🤝 समाज सेवा और सामाजिक योगदान

  • 👩‍👧 अन्नदान और गरीब सेवा

  • 💉 रक्तदान शिविर और स्वास्थ्य जांच

  • 📚 संस्कृति व शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम

  • 🧵 महिलाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण

हमारे पिछले रथ यात्रा आयोजनों की झलकियाँ

श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर की खास बातें:

रथ यात्रा में दिल्ली भर से हजारों भक्त शामिल होते हैं।

पूरे उत्सव में मुक्त प्रसाद वितरण, भजन संध्या, और संस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

आप Live Aarti YouTube चैनल पर भी पूरे कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देख सकते हैं।

💖 भक्तों से विनम्र अनुरोध – करें पुण्य का दान

🙏 श्री जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 के भव्य आयोजन में आप भी भागीदार बनें! आप अपने सहयोग से भंडारा, सजावट, भजन संध्या, सुरक्षा व्यवस्था और महाप्रसाद वितरण जैसी सेवाओं में योगदान कर सकते हैं।
दान करें और पाएं भगवान जगन्नाथ की कृपा व 80G कर छूट का लाभ।

📞 अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें: +919319045850
💳 ऑनलाइन दान लिंक:  DONATION
📍 स्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली
🌐 www.shrijagannathmandirdelhi.in

निष्कर्ष :         

भक्ति और उत्सव का एक कभी न खत्म होने वाला सफर

रथ यात्रा सिर्फ एक सालाना त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारे सनातन धर्म की जीवंतता, भाईचारे और भगवान के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि भगवान सिर्फ मंदिरों में नहीं रहते, बल्कि वे अपने भक्तों के बीच आते हैं, उनके दुखों को दूर करते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह त्योहार हर साल हमें याद दिलाता है कि विनम्रता, सेवा और सच्चा प्यार ही हमें भगवान से जोड़ता है।

जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में, हमें इस शानदार परंपरा को निभाते रहने पर बहुत गर्व है। हमारे लिए यह सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि एक मौका है जहाँ हम सब मिलकर भगवान जगन्नाथ की जय-जयकार करते हैं, अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं और भक्ति के रास्ते पर एक साथ चलते हैं। हम आपको रथ यात्रा 2025 में हमारे साथ जुड़ने और इस खास आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा बनने के लिए दिल से बुलाते हैं। आइए, हम सब मिलकर रथों को खींचें, भगवान का आशीर्वाद लें और भक्ति के इस बड़े सागर में डूब जाएं। जय जगन्नाथ!

भक्तों द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले सवाल – मंदिर से जुड़ाव को समझें  (FAQs)

उ1: रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को समर्पित एक बड़ा हिंदू त्योहार है। 2025 में, मुख्य रथ यात्रा जुलूस 27 जून (शुक्रवार) को है। हमारे मंदिर में कार्यक्रम 11 जून से 8 जुलाई तक चलेंगे।

उ2: रथ यात्रा का मतलब है कि भगवान जगन्नाथ बिना किसी भेदभाव के सभी भक्तों को दर्शन देने बाहर आते हैं। यह प्यार, करुणा और आत्मा की यात्रा का प्रतीक है। रथ खींचना बहुत पुण्य का काम माना जाता है।

उ3: हाँ, बिल्कुल! हम सभी भक्तों का स्वागत करते हैं। आप रथ यात्रा के दिन (27 जून) और बाहुड़ा यात्रा के दिन (05 जुलाई) रथ खींचने सहित कई कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं। कृपया ऊपर दिया गया पूरा कार्यक्रम देखें।

उ4: मुख्य रीति-रिवाजों में देबस्नान पूर्णिमा, नेत्रोत्सव, रथ यात्रा, हेरा पंचमी, बाहुड़ा यात्रा, सुना वेश, आधार पाणा और नीलाद्री बिजे शामिल हैं।

उ5: रथ यात्रा एक बड़ा त्योहार है, लेकिन यह दिल्ली में हर जगह सरकारी छुट्टी नहीं होती है। हालांकि, कुछ निजी संस्थान या समुदाय छुट्टी रख सकते हैं। आपको अपने दफ्तर या स्थानीय प्रशासन से पता करना चाहिए।

उ6: महाप्रसाद भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाला पवित्र भोजन है, जिसे बाद में भक्तों को दिया जाता है। इसे बहुत पवित्र माना जाता है। हाँ, जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में त्योहार के दौरान महाप्रसाद बांटने का इंतजाम होता है।

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