The Oldest Shri Jagannath Mandir in Delhi & NCR - Since 1968

नीलाद्री बिजे 2025: रथ यात्रा का भव्य समापन – जब भगवान जगन्नाथ अपने धाम लौटते हैं, और रूठी प्रिया को मनाते हैं!

Niladri Bije Tyagaraj Nagar 2025: Lord Jagannath's grand homecoming.

नीलाद्री बिजे त्यागराज नगर: आस्था, प्रेम और मिलन का ये अद्वितीय पर्व!

एक महीने से अधिक समय तक चला प्रतीक्षा का सफर, दस दिनों की अलौकिक यात्रा, और फिर एक भव्य घर वापसी – यही है नीलाद्री बिजे का सार. यह सिर्फ रथों का लौटना नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ की अपने धाम में विजयी वापसी है. इससे भी बढ़कर, यह अपनी प्रिय पत्नी देवी लक्ष्मी को मनाने की एक प्रेमिल लीला है.

08 जुलाई, 2025 को, दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर, नीलाद्री बिजे के इस हृदयस्पर्शी अनुष्ठान का साक्षी बनेगा. यह वह दिन है जब रथ यात्रा का महापर्व अपने चरम पर पहुँचता है, और भगवान अपने सिंहासन पर पुनः विराजमान होते हैं. आइए, इस अंतिम और सबसे भावुक अनुष्ठान के महत्व, इसकी अनोखी कथाओं और त्यागराज नगर में इसके जीवंत आयोजन को विस्तार से जानें.

नीलाद्री बिजे: यात्रा का चरमोत्कर्ष और भावनात्मक पुनर्मिलन 

‘नीलाद्री बिजे’ का अर्थ है ‘नीलांचल’ (पुरी या नीला पर्वत) में ‘विजयी प्रवेश’. यह रथ यात्रा उत्सव का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा, नौ दिनों के प्रवास और रथों पर अतिरिक्त दिनों तक रहने के बाद, अपने मुख्य मंदिर के गर्भगृह में पुनः प्रवेश करते हैं.

विलंब से घर लौटना और प्रतीक्षा 

बाहुड़ा यात्रा के बाद भी, देवता तुरंत मंदिर में प्रवेश नहीं करते. वे कुछ दिनों तक मंदिर के सिंहद्वार पर ही अपने रथों पर विराजमान रहते हैं. इस दौरान सुना वेश और आधार पाणा जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान होते हैं. नीलाद्री बिजे वह पवित्र क्षण है जब वे अंततः अपने मूल सिंहासन पर लौटते हैं. यह भक्तों के लिए एक गहन भावनात्मक पल होता है, क्योंकि वे अपने आराध्य को अंततः ‘घर’ में स्थायी रूप से प्रतिष्ठित होते देखते हैं. वास्तव में, यह उत्सव यात्रा के सुखद और पूर्ण समापन का प्रतीक है.

देवी लक्ष्मी की मनुहार: रसगुल्ला का मधुर भोग 

नीलाद्री बिजे की सबसे आकर्षक और प्रतीकात्मक रस्मों में से एक है भगवान जगन्नाथ द्वारा देवी लक्ष्मी को मनाया जाना. रथ यात्रा पर बिना बताए निकल जाने के कारण देवी लक्ष्मी अभी भी थोड़ी रूठी हुई होती हैं. जब भगवान जगन्नाथ मंदिर के भीतर प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, तो देवी लक्ष्मी उन्हें मुख्य द्वार पर ही रोक देती हैं. इस ‘रोका’ की रस्म में, भगवान उन्हें मनाने के लिए, विशेष रूप से तैयार किए गए रसगुल्ला का भोग अर्पित करते हैं. यह लीला अत्यंत मनमोहक और मानवीय होती है. यह दर्शाता है कि दिव्य रिश्तों में भी प्रेम, मनुहार और मिठास कितनी आवश्यक है. देवी लक्ष्मी अंततः मान जाती हैं और भगवान को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देती हैं.

नीलाद्री बिजे की पौराणिक गहराई और प्रतीकात्मकता 

नीलाद्री बिजे का अनुष्ठान केवल एक अंतिम रस्म नहीं, बल्कि गहन धार्मिक और भावनात्मक अर्थ रखता है.

1. प्रेम और क्षमा की लीला 

यह अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के बीच के प्रेम, नाराजगी और अंततः क्षमा व पुनर्मिलन की एक अनूठी लीला को दर्शाता है. यह सिखाता है कि रिश्ते कितने भी दिव्य क्यों न हों, उनमें भावनाओं का आदान-प्रदान और एक-दूसरे को मनाना आवश्यक है. इस प्रकार, यह भक्तों को भगवान के मानवीय पहलुओं से जोड़ता है.

2. ब्रह्मांडीय यात्रा का समापन 

नीलाद्री बिजे रथ यात्रा की पूरी ब्रह्मांडीय यात्रा को पूर्णता प्रदान करता है. यह दर्शाता है कि भगवान की लीला का एक चक्र पूरा हो गया है, और वे अब भक्तों के लिए अपने स्थायी निवास में उपलब्ध हैं. यह भक्तों को जीवन के चक्र, परिवर्तन और अंततः शांति व स्थिरता की ओर लौटने का संदेश देता है.

3. स्थिरता और आशीर्वाद की वापसी 

देवताओं के गर्भगृह में लौटने से मंदिर में एक बार फिर शांति, स्थिरता और दिव्यता का पूर्ण वास होता है. यह भक्तों के लिए आशीर्वाद और सुरक्षा की निरंतरता का प्रतीक है. यह अगले वर्ष की रथ यात्रा तक भगवान की उपस्थिति और कृपा का आश्वासन देता है. यह पवित्रता और व्यवस्था की पुनर्स्थापना है.

त्यागराज नगर में नीलाद्री बिजे: दिल्ली में आस्था का भव्य समापन! 

दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी की पवित्र परंपराओं को राजधानी में पूरी निष्ठा और उत्साह के साथ निभाता है. नीलाद्री बिजे का उत्सव भी यहाँ अत्यंत भावनात्मक और भव्य तरीके से मनाया जाता है.

गर्भगृह में प्रवेश की तैयारी 

बाहुड़ा यात्रा के बाद, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथ मंदिर के सिंहद्वार पर कुछ दिन तक रहते हैं. नीलाद्री बिजे के दिन, देवताओं को रथों से उतारकर मंदिर के भीतर, उनके मूल सिंहासन पर ले जाने की प्रक्रिया शुरू होती है. इस दौरान, पुजारी और सेवादार पारंपरिक भजन और कीर्तन गाते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है. यह एक विशेष प्रकार का उत्साह और प्रत्याशा लाता है.

देवी लक्ष्मी का ‘रोका’ और रसगुल्ला का मधुर अर्पण 

यह इस दिन का सबसे प्रतीक्षित और मनोरंजक अनुष्ठान है. जब भगवान जगन्नाथ को मुख्य द्वार से प्रवेश कराने का प्रयास किया जाता है, तो देवी लक्ष्मी द्वारा प्रतीकात्मक रूप से उन्हें रोक दिया जाता है. इस ‘रोका’ की रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं. भगवान जगन्नाथ, अपनी प्रिया को मनाने के लिए, उन्हें स्वादिष्ट रसगुल्ला का भोग अर्पित करते हैं. यह एक बेहद आकर्षक और हृदयस्पर्शी क्षण होता है. अंततः, देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भगवान को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति देती हैं.

पुनः-प्रतिष्ठा और उत्सव का समापन 

देवी लक्ष्मी की अनुमति के बाद, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को धीरे-धीरे, पारंपरिक ‘पहांडी’ विधि से, मंदिर के गर्भगृह में उनके मूल सिंहासन पर पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है. यह रथ यात्रा उत्सव का अंतिम और सबसे पवित्र क्षण होता है. भक्तगण इस दौरान भावुक होकर ‘जय जगन्नाथ’ के जयकारे लगाते हैं. महाप्रसाद का वितरण भी होता है, जो भक्तों की सेवा का प्रतीक है. सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता रहती है ताकि सभी भक्त शांतिपूर्वक इस भव्य समापन का साक्षी बन सकें.

निष्कर्ष 

नीलाद्री बिजे 2025 त्यागराज नगर में भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा का एक ऐसा समापन होगा, जो आनंद, प्रेम और आध्यात्मिक पूर्णता से भरा होगा. यह केवल रथों का मंदिर में लौटना नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के मधुर पुनर्मिलन की एक हृदयस्पर्शी लीला है. यह पर्व हमें सिखाता है कि हर यात्रा का एक गंतव्य होता है, और प्रेम तथा समर्पण से हर रूठी हुई भावना को मनाया जा सकता है. त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर इस अद्वितीय परंपरा को दिल्ली में जीवंत रखकर, भक्तों को इस दिव्य अनुभव का भागीदार बनने का अवसर देता है. इस 08 जुलाई, 2025 को, आप भी इस भव्य समापन और भगवान के विजयी प्रवेश का हिस्सा बनें.

💖 भक्तों से विनम्र अनुरोध – करें पुण्य का दान

🌼 आस्था का अर्पण, सेवा का समर्पण! 🙏
श्री जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 में आधार पाणा महोत्सव हेतु आपका योगदान बने भगवान की सेवा का अमूल्य हिस्सा।
रथ की गरिमा, महाप्रसाद की मधुरता और भक्ति का भाव – सबमें आपकी भेंट होगी सहभागी।
आज ही सहयोग करें और श्री जगन्नाथ की कृपा पाएं!
अब योगदान करें – और पाएं भगवान जगन्नाथ का अपार आशीर्वाद!
आज ही दान करें और इस पुण्य अवसर का हिस्सा बनें!
दान करें और पाएं भगवान जगन्नाथ की कृपा व 80G कर छूट का लाभ।

📞 अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें: +919319045850
💳 ऑनलाइन दान लिंक:  DONATION
📍 स्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली
🌐 www.shrijagannathmandirdelhi.in

QR-CODE-FOR-DONATION

नीलाद्री विजय से जुड़े श्रद्धालुओं के सामान्य सवाल (FYQs)

‘नीलाद्री बिजे’ का अर्थ है ‘नीलांचल’ (पुरी या नीला पर्वत) में ‘विजयी प्रवेश’. यह रथ यात्रा उत्सव का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रथों पर प्रवास के बाद अपने मुख्य मंदिर के गर्भगृह में पुनः प्रवेश करते हैं. 2025 में, नीलाद्री बिजे 08 जुलाई को मनाई जाएगी.

बाहुड़ा यात्रा के बाद भी, देवता कुछ दिनों तक मंदिर के सिंहद्वार पर अपने रथों पर ही विराजमान रहते हैं. इस दौरान सुना वेश और आधार पाणा जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान संपन्न होते हैं, जिसके बाद ही नीलाद्री बिजे पर वे गर्भगृह में लौटते हैं.

इस दिन की सबसे खास और मनमोहक रस्म है भगवान जगन्नाथ द्वारा अपनी रूठी हुई पत्नी, देवी लक्ष्मी को मनाना. जब भगवान मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, तो देवी लक्ष्मी उन्हें रोक देती हैं. भगवान उन्हें स्वादिष्ट रसगुल्ला का भोग अर्पित कर मनाते हैं.

यह लीला भगवान और देवी के बीच प्रेम, नाराजगी और अंततः क्षमा व पुनर्मिलन की एक अनूठी कहानी दर्शाती है. यह सिखाती है कि रिश्तों में मानवीय भावनाएं और मनुहार कितनी ज़रूरी हैं, चाहे रिश्ते कितने भी दिव्य क्यों न हों.

दिल्ली का श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, पुरी की परंपराओं का पूरी निष्ठा से पालन करता है. यहाँ भी भगवान को रथों से उतारकर गर्भगृह में पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है. देवी लक्ष्मी द्वारा भगवान को ‘रोका’ जाता है और फिर रसगुल्ला चढ़ाकर उन्हें मनाया जाता है. इस दौरान भव्य भजन-कीर्तन होते हैं और भक्त उत्साहपूर्वक जयकारे लगाते हैं.

नीलाद्री बिजे रथ यात्रा के पूरे ब्रह्मांडीय चक्र को पूर्णता प्रदान करता है. यह दर्शाता है कि भगवान की लीला का एक चक्र पूरा हो गया है और वे अब भक्तों के लिए अपने स्थायी निवास में पुनः स्थापित हो गए हैं. यह अगले वर्ष के उत्सव की प्रतीक्षा का भी संकेत है.

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shri Jagannath Mandir & Odisha Arts & Cultural Centre is a Non Profit and Non Political registered Society having the objective of promotion of Classical dances of Indian including Odishi and Social Welfare related activities like helping the deprived section of society by way of organising medical health check-up camps, feeding the poor and needy children, helping the poor patients etc, besides arranging rituals activities of the Mandir.

We are under 80 G & 12 A ( Income Tax Act) , You can donate and get benefit in income tax.

Anubhav Mohanty & Jagrati Shukla’s Wedding

AT SHRI JAGANNATH MANDIR, THYAGRAJ NAGAR, DELHI

Related Posts
Jhulan Yatra2025 thyagraj nagar jagannath mandir delhi

झूलन पूर्णिमा उत्सव 2025 – प्रेम, भक्ति और आनंद का अनुपम संगम

तिथि: 04 अगस्त 2025 से 10 अगस्त 2025समय: शाम 07:30 बजे से रात 09:00 बजे तकस्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, थायागराज नगर, नई दिल्ली झूलन पूर्णिमा:

Read More »
Social Media Updates