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Why We Celebrate Rath Yatra

Introduction Rath Yatra, also known as the Festival of Chariots, is a significant Hindu festival celebrated with immense enthusiasm and devotion. The festival, primarily observed in Puri, Odisha, is dedicated to Lord Jagannath, an incarnation of Lord Vishnu, and his siblings, Lord Balabhadra and Goddess Subhadra. Rath Yatra is celebrated for various religious, mythological, and cultural reasons, making it a unique and multifaceted event. Mythological Significance The primary reason for celebrating Rath Yatra is rooted in Hindu mythology. According to ancient scriptures, the festival commemorates the annual journey of Lord Jagannath, Lord Balabhadra, and Goddess Subhadra from the Jagannath Temple to the Gundicha Temple, their aunt’s home. This journey symbolizes a divine family reunion and the bond between siblings. The deities stay at the Gundicha Temple for nine days before returning to their original abode, marking a complete cycle of the festival. Religious Importance Rath Yatra holds immense religious significance

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Rath Yatra: A Divine Journey of Faith and Celebration

Introduction Rath Yatra, also known as the Festival of Chariots, is one of the most significant and vibrant Hindu festivals. Celebrated with great fervor and enthusiasm, Rath Yatra involves the procession of deities on elaborately decorated chariots. The most renowned Rath Yatra takes place in Puri, Odisha, dedicated to Lord Jagannath, his brother Balabhadra, and sister Subhadra. This festival symbolizes the annual journey of these deities from the Jagannath Temple to the Gundicha Temple. Historical Significance Rath Yatra has a rich historical and mythological background. The tradition dates back to ancient times and is mentioned in various scriptures and texts. The festival commemorates the journey of Lord Jagannath, believed to be an incarnation of Lord Vishnu, along with his siblings to their aunt’s place, signifying a divine family reunion. The Chariots The highlight of Rath Yatra is the magnificent chariots, which are constructed anew every year. Each chariot has its

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SUNDERKAND PATH

सुंदरकांड पाठ । ॥ श्लोक ॥  शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं, ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌। रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं,वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥१॥ नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये,सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे,कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं,दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥   ॥ चौपाई ॥ जामवंत के बचन सुहाए।सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।सहि दुख कंद मूल फल खाई॥ जब लगि आवौं सीतहि देखी।होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥ सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार-बार रघुबीर सँभारी।तरकेउ पवनतनय बल भारी॥ जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥ जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।एही भाँति चलेउ हनुमाना॥ जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥ श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 1 – दोहा 6)   ॥ दोहा 1 ॥ हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम,राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ

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Shree Hanuman Chalisa (श्री हनुमान चालीसा)

Shree Hanuman Chalisa (श्री हनुमान चालीसा) श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारिबरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारिबुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमारबल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार जय हनुमान ज्ञान गुन सागरजय कपीस तिहुं लोक उजागररामदूत अतुलित बल धामाअंजनि पुत्र पवनसुत नामा महाबीर बिक्रम बजरंगीकुमति निवार सुमति के संगीकंचन बरन बिराज सुबेसाकानन कुंडल कुंचित केसाहाथ बज्र औ ध्वजा बिराजैकांधे मूंज जनेऊ साजैसंकर सुवन केसरीनंदनतेज प्रताप महा जग बन्दन विद्यावान गुनी अति चातुरराम काज करिबे को आतुरप्रभु चरित्र सुनिबे को रसियाराम लखन सीता मन बसियासूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावाबिकट रूप धरि लंक जरावाभीम रूप धरि असुर संहारेरामचंद्र के काज संवारेलाय सजीवन लखन जियायेश्रीरघुबीर हरषि उर लायेरघुपति कीन्ही बहुत बड़ाईतुम मम प्रिय भरतहि सम भाईसहस बदन तुम्हरो जस गावैंअस कहि श्रीपति कंठ लगावैंसनकादिक ब्रह्मादि मुनीसानारद सारद सहित अहीसा जम कुबेर दिगपाल जहां तेकबि कोबिद कहि सके कहां तेतुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हाराम मिलाय राज पद दीन्हातुम्हरो मंत्र बिभीषन मानालंकेस्वर भए सब

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TULSI PUJA – तुलसी पूजा

Tulsi Puja तुलसी माता का स्तुति मंत्र  देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः,नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।  मां तुलसी का पूजन मंत्र  तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।   तुलसी माता का ध्यान मंत्र  तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।   तुलसी माता की आरती  जय जय तुलसी मातासब जग की सुख दाता, वर दाताजय जय तुलसी माता ।। सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपररुज से रक्षा करके भव त्राताजय जय तुलसी माता।। बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्याविष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाताजय जय तुलसी माता ।। हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दितपतित जनो की तारिणी विख्याताजय जय तुलसी माता ।। लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन मेंमानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाताजय जय तुलसी माता ।। हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण

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रघु दास – भगवान जगन्नाथ के सच्चे भक्त | भागवत-कथा

एक समय रघु दास नाम के भगवान रामचन्द्र के एक महान भक्त थे। वह पुरी में जगन्नाथ मंदिर के सिंह द्वार के पास एक बड़ी छतरी के नीचे रहते थे। एक बार जब वह भगवान जगन्‍नाथ के दर्शन करने गये तो उन्‍होंने जगन्‍नाथ की वेदी पर राम, लक्ष्‍मण और सीता को देखा। उस दिन से उन्हें विश्वास हो गया कि भगवान जगन्नाथ, भगवान रामचन्द्र से भिन्न नहीं हैं। रघु ने भगवान जगन्नाथ के प्रति मैत्रीपूर्ण प्रेम, सख्य रस विकसित किया। एक बार रघु ने भगवान जगन्नाथ के लिए एक अच्छी माला तैयार की और पुजारी को भगवान को चढ़ाने के लिए दी। लेकिन पुजारी इसे चढ़ाना नहीं चाहता था, क्योंकि रघु ने केले के पेड़ की छाल से बनी डोरी का इस्तेमाल किया था। उस समय जगन्नाथ के मंदिर में ऐसी चीजों का उपयोग वर्जित था। रघु को बहुत दुख हुआ कि उनकी माला भगवान जगन्नाथ को नहीं चढ़ाई गई।

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जगन्नाथ मंगल आरती (Jagannath Mangal Aarti)

आरती श्री जगन्नाथआरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी, मंगलकारी नाथ आपादा हरि,कंचन को धुप दीप ज्योत जगमगी,अगर कपूर बाटी भव से धारी,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी,घर घरन बजता बाजे बंसुरी,घर घरन बजता बाजे बंसुरी,झांझ या मृदंग बाजे, ताल खनजरी,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी,निरखत मुखारविंद परसोत चरनारविन्द आपादा हरि,जगन्नाथ स्वामी के अताको चढे वेद की धुवानी,जगन्नाथ स्वामी के भोग लागो बैकुंठपुरी,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी, इंद्र दमन सिंह गजे रोहिणी खड़ी,इंद्र दमन सिंह गजे रोहिणी खड़ी,मार्कंडेय स्व गंगा आनंद भरि,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी,सरनार मुनि द्वारे तदे ब्रह्म वेद भानी,सरनार मुनि द्वारे तदे ब्रह्म वेद भानी,धन धन ओह सुर स्वामी आनंद गढ़ी,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी,मंगलकारी नाथ आपादा हरि, कंचन को धुप दीप ज्योत जगमगी,अगर कपूर बाटी भव से धारी,आरती श्री जगन्नाथ मंगल कारी,आरती श्री बैकुंठ मंगलकारी

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Pahili Bhog

Worth mentioning, the ‘Pahili Bhoga’ is a delicious ‘food’ prepared by Yashoda (mother of Lord Krishna). After ‘Margasira’ month, Goddess Lakshmi, wife of Lord Jagannath, visits her father’s house and stays there for one month. In her absence at Srimandir, mother Yashoda prepares food for her son Lord Jagannath and offers Him early in the morning till Goddess Lakshmi returns to Srimandir from her father’s house ‘sea’. PAHILI BHOG will be offered to Lord Jagannath from Dhanu Sankranti 16-12-2023 (Saturday) to previous day of Makar Sankranti 14-01-2024 (Sunday) (30 days). at Shri Jagannath Mandir Thyagraj Nagar, New Delhi. Devotee may offer this prasad on any day in this period to Lord Jagannath by paying Rs 501/-. Devotees may collect their prasad after 9:00 AM from the reception. For booking Please Contact at Reception: Shri Jagannath Mandir, Tyagraj Nagar (Near Tyagraj Stadium), ND-03 Mob: 9319045850, 9319045851 Ph: 011-24626966/24647722 Book your prasad

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Ghodalagi Besha

From Odhan Sasthi to Basanta Panchami in the months of Margasira and Pousha. The month of Marghasira are the cooler parts of the year. Thus during the period from Margasira Sukla Sasthi tithi (the 6th day of the bright fortnight in Margasira) to Magha Sukla Panchami tithi (the 5th day of the bright fortnight in Magha i.e. Basanta Panchami), deities wear winter clothes. The entire body barring His face is covered with velvet clothes. shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, New Delhi. Jai Jagannath

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Radha Damodar Astakam ?

नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरूपं,लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्। यशोदाभियोलूखलाधावमानं,परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या।।१।। रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं,कराम्भोज-युग्मेन सातंकनेत्रम्। मुहुःश्वासकम्प – त्रिरेखाप्रकण्ठ –स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्।।२।। इतीदृक् स्वलीलाभिरानन्द कुण्डे,स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्। तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं,पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे।।३।। वरं देव ! मोक्षं न मोक्षावधिं वा,न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह। इदन्ते वपुर्नाथ! गोपालबालं,सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः।।४।। इदन्ते मुखाम्भोजमव्यक्तनीलै -र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या। मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे,मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः।।५।। नमो देव दामोदरानन्त विष्णो ! प्रसीद प्रभो ! दुःखजालाब्धिमग्नम्। कृपादृष्टि-वृष्ट्यातिदीनं बतानुगृहाणेश ! मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः।।६।। कुबेरात्मजौ बद्धमुरत्यैव यद्वत्,त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च। तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ,न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह।।७।। नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने,त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने। नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै,नमोऽनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम्।।८।।

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