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माँ सिद्धिदात्री की कथा एवं आरती

माँ सिद्धिदात्री नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन पूजित होती हैं। वे सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं। इनके पूजन से भक्तों को अष्ट सिद्धियाँ (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व) प्राप्त होती हैं। पौराणिक कथा भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री की कृपा से ही सभी सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी शक्ति से ही भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। माँ सिद्धिदात्री सृष्टि की अंतिम शक्ति हैं, जो भक्तों को संपूर्ण आध्यात्मिक एवं लौकिक सिद्धियों का वरदान देती हैं। माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें गदा, चक्र, शंख और कमल सुशोभित हैं। वे सर्वसिद्धि दायिनी हैं और भक्तों को मोक्ष प्रदान करती हैं। वे संसार के समस्त दुखों को हरने वाली हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व जीवन में सिद्धियों एवं आत्मबल की प्राप्ति होती है। धन, ऐश्वर्य, सुख और मोक्ष

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माँ महागौरी की कथा एवं आरती

माँ महागौरी नवरात्रि के आठवें दिन पूजित होती हैं। वे श्वेत रंग की, अति शांत, करुणामयी और तेजस्वी देवी हैं। उनका स्वरूप पूर्ण रूप से शुद्धता और कल्याण का प्रतीक है। पौराणिक कथा जब माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, तब वे कई वर्षों तक घने जंगलों में रहीं और इस कारण उनका शरीर धूल और मिट्टी से ढक गया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें गंगाजल से स्नान कराया, जिससे वे अति गौर वर्ण की हो गईं और तब से वे महागौरी के नाम से विख्यात हुईं। माँ महागौरी का स्वरूप उनका वर्ण गौरा (श्वेत) रंग का है। वे चार भुजाओं वाली हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में अभयमुद्रा है। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं। वे शांत, करुणामयी और दयालु हैं। माँ महागौरी की पूजा का महत्व माँ की कृपा से सभी

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माँ कालरात्रि की कथा एवं आरती

माँ कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन पूजित होती हैं। ये भय, नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाली देवी हैं। इनका स्वरूप अत्यंत उग्र है, लेकिन भक्तों के लिए ये मंगलकारी होती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकारी भी कहा जाता है। पौराणिक कथा एक बार रक्तबीज नामक असुर का आतंक पूरे ब्रह्मांड में फैल गया था। वह अपनी शक्ति से स्वयं की कई संतान उत्पन्न कर लेता था। उसके वध के लिए माँ दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण किया। माँ ने अपनी जिह्वा से रक्तबीज का सारा रक्त सोख लिया और उसका अंत कर दिया। तभी से माँ कालरात्रि भय को नष्ट करने वाली देवी मानी जाती हैं। माँ कालरात्रि का स्वरूप माँ कालरात्रि का रंग काला है। वे गर्दभ (गधा) की सवारी करती हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें वे खड्ग (तलवार), वज्र और वरमुद्रा धारण करती हैं। उनकी तीव्र दृष्टि मात्र से दुष्ट शक्तियां नष्ट हो

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माँ कात्यायनी की कथा एवं आरती

माँ कात्यायनी नवरात्रि के छठे दिन पूजित होती हैं। ये शक्ति का दिव्य स्वरूप हैं और राक्षसों के संहार के लिए जानी जाती हैं। पौराणिक कथा महर्षि कात्यायन ने कठोर तपस्या कर माँ भगवती को पुत्री रूप में पाने का वरदान प्राप्त किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ ने उनके घर में जन्म लिया, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। जब राक्षस महिषासुर का आतंक बढ़ा, तब देवी ने कात्यायन ऋषि के आश्रम में रहकर घोर तपस्या की और फिर महिषासुर का वध कर देवताओं को भय मुक्त किया। माँ कात्यायनी का स्वरूप माँ कात्यायनी चार भुजाओं वाली हैं। एक हाथ वरद मुद्रा, दूसरा अभय मुद्रा में रहता है। अन्य दो हाथों में कमल और तलवार होती है। इनका वाहन सिंह है। माँ कात्यायनी की पूजा का महत्व माँ कात्यायनी की पूजा से साहस, शक्ति, विजय और समृद्धि प्राप्त होती है। कुंवारी कन्याएं इन्हें पूजकर मनचाहा वर प्राप्त कर सकती

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माँ स्कंदमाता की कथा एवं आरती

माँ स्कंदमाता नवरात्रि के पाँचवें दिन पूजित होती हैं। ये भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं, इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। पौराणिक कथा माँ स्कंदमाता की कथा उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय (स्कंद) से जुड़ी हुई है। जब राक्षस तारकासुर का आतंक बढ़ा, तब भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने उसका वध किया। माता पार्वती अपने पुत्र को अपनी गोद में लेकर संसार का कल्याण करती हैं, इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। माँ स्कंदमाता का स्वरूप माँ स्कंदमाता कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं, इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। इनके चार हाथ होते हैं—दो हाथों में कमल, एक हाथ में भगवान स्कंद और एक हाथ वरद मुद्रा में रहता है। इनका वाहन सिंह है। माँ स्कंदमाता की पूजा का महत्व माँ स्कंदमाता की उपासना से ज्ञान, मोक्ष, सुख, और शांति की प्राप्ति होती है। माता की कृपा से भक्तों के सारे संकट दूर

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माँ कूष्मांडा की कथा एवं आरती

माँ कूष्मांडा नवरात्रि के चौथे दिन पूजित होने वाली देवी हैं। इन्हें ब्रह्मांड की सृजनकर्ता माना जाता है। अपने हल्के हास्य से उन्होंने पूरे ब्रह्मांड की रचना की, इसलिए इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। पौराणिक कथा जब सृष्टि नहीं थी, चारों ओर अंधकार व्याप्त था, तब माँ कूष्मांडा ने अपने दिव्य तेज से ब्रह्मांड की रचना की। वे सूर्य के भीतर निवास करने वाली शक्ति हैं और उन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है। इन्हीं के तेज से सूर्य मंडल प्रकाशित होता है। माँ कूष्मांडा का स्वरूप इनके आठ हाथ हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। इनके हाथों में धनुष, बाण, कमंडल, चक्र, गदा, अमृत कलश, जप माला और कमल सुशोभित रहते हैं। वे सिंह पर विराजमान रहती हैं और भक्तों को आरोग्य, समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करती हैं। माँ कूष्मांडा की पूजा का महत्व इनकी उपासना से स्वास्थ्य, दीर्घायु, समृद्धि, और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। माँ

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माँ चंद्रघंटा की कथा एवं आरती

🕉️ माँ चंद्रघंटा की पूजा श्री जगन्नाथ मंदिर दिल्ली में: साहस और शांति की देवी नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा होती है। श्री जगन्नाथ मंदिर दिल्ली में माँ चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों को अद्भुत साहस, आत्मविश्वास और शांति प्राप्त होती है। माँ के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। 📜 पौराणिक कथा जब राक्षसों का आतंक बढ़ा और महिषासुर ने देवताओं को परेशान किया, तब देवी पार्वती ने चंद्रघंटा रूप धारण किया। विवाह के दिन, देवी ने युद्ध के लिए दस भुजाओं वाला रूप लिया, जिसमें वे विविध अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थीं। सिंह पर सवार होकर जब उन्होंने गर्जना की, तो राक्षस भयभीत हो गए और देवताओं की विजय हुई। 🌟 माँ चंद्रघंटा का स्वरूप माँ का रंग स्वर्ण के समान चमकदार होता है। उनके दस हाथों में त्रिशूल, तलवार, धनुष, गदा, कमंडल, कमल, आदि शस्त्र होते

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माँ ब्रह्मचारिणी की कथा एवं आरती

माँ ब्रह्मचारिणी नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित होती हैं। वे तपस्या की देवी मानी जाती हैं और कठोर साधना के प्रतीक स्वरूप हैं। पौराणिक कथा माँ ब्रह्मचारिणी का पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था, जब उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने हजारों वर्षों तक फल-फूल और फिर निर्जल रहकर कठिन तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इस कारण वे ब्रह्मचारिणी नाम से प्रसिद्ध हुईं। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और ज्योतिर्मयी है। उनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडल सुशोभित है। वे ज्ञान, तपस्या और त्याग की प्रतीक मानी जाती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व इनकी आराधना से आत्मबल, संयम, वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। भक्तों को जीवन में सफलता और इच्छाशक्ति का आशीर्वाद

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माँ शैलपुत्री आरती कथा – जगन्नाथ मंदिर दिल्ली में भक्ति का आरंभ

माँ शैलपुत्री नवरात्रि के पहले दिन पूजित होने वाली देवी हैं। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इन्हें पार्वती तथा सती के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक कथा पिछले जन्म में माँ शैलपुत्री राजा दक्ष की पुत्री थीं और उनका नाम सती था। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती को यह पता चला, तो वे बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं। वहाँ उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे व्यथित होकर सती ने स्वयं को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया। इस घटना के बाद, अगले जन्म में सती पर्वतराज हिमालय के घर में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। इस जन्म में उन्होंने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त किया। माँ शैलपुत्री का स्वरूप माँ शैलपुत्री वृषभ

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नवरात्रि भक्ति, शक्ति और माँ दुर्गा की उपासना

श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, दिल्ली में भव्य नवरात्रि महोत्सव नवरात्रि हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे शक्ति की उपासना के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा, व्रत, और भजन-कीर्तन के माध्यम से भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। 2025 में यह पर्व 30 मार्च से 6 अप्रैल तक मनाया जाएगा। नवरात्रि का महत्व नवरात्रि का अर्थ है ‘नौ रातें’, जिनमें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यह समय आध्यात्मिक जागरूकता, भक्ति और शक्ति के संचार का होता है। भक्तगण व्रत रखते हैं, माँ की आराधना करते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। माँ दुर्गा के नौ स्वरूप हर दिन माँ दुर्गा के एक अलग रूप की पूजा की जाती है: माँ शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री, जो शुद्धता और भक्ति का प्रतीक हैं। माँ ब्रह्मचारिणी –

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