माँ कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन पूजित होती हैं। ये भय, नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाली देवी हैं। इनका स्वरूप अत्यंत उग्र है, लेकिन भक्तों के लिए ये मंगलकारी होती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकारी भी कहा जाता है।
पौराणिक कथा
एक बार रक्तबीज नामक असुर का आतंक पूरे ब्रह्मांड में फैल गया था। वह अपनी शक्ति से स्वयं की कई संतान उत्पन्न कर लेता था। उसके वध के लिए माँ दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण किया।
माँ ने अपनी जिह्वा से रक्तबीज का सारा रक्त सोख लिया और उसका अंत कर दिया। तभी से माँ कालरात्रि भय को नष्ट करने वाली देवी मानी जाती हैं।
माँ कालरात्रि का स्वरूप
माँ कालरात्रि का रंग काला है।
वे गर्दभ (गधा) की सवारी करती हैं।
उनके चार हाथ हैं, जिनमें वे खड्ग (तलवार), वज्र और वरमुद्रा धारण करती हैं।
उनकी तीव्र दृष्टि मात्र से दुष्ट शक्तियां नष्ट हो जाती हैं।
माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व
माँ कालरात्रि की उपासना से भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
इस दिन की पूजा से मंगल, शनि और राहु ग्रह के दोष समाप्त होते हैं।
भक्तों को साहस, आत्मबल और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
मंत्र
“ॐ देवी कालरात्र्यै नमः”
माँ कालरात्रि की आरती
जय कालरात्रि माता, जय कालरात्रि माता।
रक्त दन्ता काली, जय कालरात्रि माता॥
चंड मुण्ड संहारे, दुष्टों को संहारे।
भक्तों के कष्ट हरती, सुख सम्पत्ति वारे॥
जो भक्त तुम्हें ध्याते, साधक जन लाभ पाते।
भय से मुक्ति होती, घर में खुशियां आती॥
रक्तबीज का संहारा, किया महिषासुर मारा।
भूत-प्रेत भाग जाते, जब तेरा नाम पुकारा॥
काला रंग सुहाए, जो देखे वो घबराए।
पर जो शरण में आए, माँ संकट से बचाए॥
जय अम्बे जय काली, संकट हरने वाली।
जो तेरा गुण गाते, भवसागर तर जाते॥
जय माता दी! 🙏