माँ ब्रह्मचारिणी नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित होती हैं। वे तपस्या की देवी मानी जाती हैं और कठोर साधना के प्रतीक स्वरूप हैं।
पौराणिक कथा
माँ ब्रह्मचारिणी का पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था, जब उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने हजारों वर्षों तक फल-फूल और फिर निर्जल रहकर कठिन तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इस कारण वे ब्रह्मचारिणी नाम से प्रसिद्ध हुईं।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और ज्योतिर्मयी है। उनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडल सुशोभित है। वे ज्ञान, तपस्या और त्याग की प्रतीक मानी जाती हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
इनकी आराधना से आत्मबल, संयम, वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। भक्तों को जीवन में सफलता और इच्छाशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मंत्र
“ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
माँ ब्रह्मचारिणी की आरती
जय ब्रह्मचारिणी माता, जय ब्रह्मचारिणी माता।
तुमको निशदिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता॥
शंकर के घर जाने वाली, माता शुभ दाता।
जय ब्रह्मचारिणी माता, जय ब्रह्मचारिणी माता॥
अखंड ज्योति जलाकर, माँ, तप का दीप जलाया।
ज्ञान और वैराग्य से, सब जग को प्रकाश दिखाया॥
रुद्राक्ष की माला धारण, कर में कमंडल शोभे।
संत जनों की हो रक्षा, हर भक्त तुझको लोभे॥
तप की मूर्ति, ज्ञान की गंगा, सुख-समृद्धि दाता।
जय ब्रह्मचारिणी माता, जय ब्रह्मचारिणी माता॥
व्रत जो तेरा धारण करते, भवसागर तर जाते।
सभी कष्ट मिटाकर माता, सबका उद्धार कराते॥
प्रेम से जो भी गाए माँ, जीवन सफल बनाए।
सभी संकट हर ले माँ, मनवांछित फल पाए॥
जय ब्रह्मचारिणी माता, जय ब्रह्मचारिणी माता।
तुमको निशदिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता॥
माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से सभी भक्तों को संयम, साहस, और सफलता की प्राप्ति हो।
🙏 जय माता दी! 🙏