भगवान जगन्नाथ के नए रूप के पहले दर्शन – नेत्रोत्सव 2025 का खास दिन!
क्या आप जानते हैं कि 15 दिनों के एकांतवास के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों को कैसे दर्शन देते हैं? यह किसी रहस्य से कम नहीं! दरअसल, यह एक अद्भुत परंपरा है, जिसे ‘नेत्रोत्सव’ या ‘नव्यौवन दर्शन’ कहते हैं. यह भगवान और भक्तों के बीच के अटूट रिश्ते का एक ऐसा पर्व है, जिसका हर श्रद्धालु बेसब्री से इंतजार करता है.
26 जून, 2025 को, दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में यह दिव्य उत्सव मनाया जाएगा. देवस्नान पूर्णिमा के बाद 15 दिनों तक एकांत में रहने के बाद, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा एक नए, युवा रूप में भक्तों के सामने प्रकट होंगे. आइए, इस विशेष दिन के महत्व, इसकी कथाओं और त्यागराज नगर में इसके भव्य आयोजन को विस्तार से जानें.
नेत्रोत्सव क्या है? – भगवान का नवयौवन रूप!
सीधे शब्दों में कहें तो, ‘नेत्रोत्सव’ दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘नेत्र’ (आँखें) और ‘उत्सव’ (पर्व). यह वह दिन है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के नेत्रों को फिर से रंगा जाता है. यह कार्य 15 दिनों के ‘अनवसर’ काल के ठीक बाद होता है.
इस दिन, भगवान एक नए, युवा और स्वस्थ रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. इसलिए, इसे ‘नव्यौवन दर्शन’ भी कहा जाता है. यह एक ऐसा पल होता है, जब भक्त अपने आराध्य को ‘स्वस्थ’ देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं. यह रथ यात्रा से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है.
अनवसर के बाद भगवान की वापसी – एक अनोखी कथा
नेत्रोत्सव सीधे तौर पर देवस्नान पूर्णिमा और उसके बाद के 15 दिनों के ‘अनवसर’ काल से जुड़ा है.
देवस्नान पूर्णिमा से जुड़ा रहस्य
देवस्नान पूर्णिमा पर भगवान को 108 घड़े पवित्र जल से स्नान कराया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस अत्यधिक स्नान के कारण भगवान ‘अस्वस्थ’ हो जाते हैं. इसीलिए, वे 15 दिनों के लिए भक्तों के दर्शन से ओझल हो जाते हैं. इस अवधि को ‘अनवसर’ या ‘अनासर’ कहा जाता है. इस दौरान, भगवान को एक विशेष एकांत कक्ष में रखा जाता है. वहाँ, उन्हें आयुर्वेदिक औषधियाँ और विशिष्ट भोग लगाए जाते हैं, ताकि वे अपनी ‘अस्वस्थता’ से उबर सकें.
नवयौवन का प्रतीकात्मक अर्थ
अनवसर काल के अंत में, भगवान पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं. वे फिर से ऊर्जा और नवयौवन से भर जाते हैं. नेत्रोत्सव का पर्व इसी ‘पुनरुत्थान’ और ‘नूतन ऊर्जा’ का प्रतीक है. चूँकि भगवान की मूर्तियाँ नीम की लकड़ी से बनी हैं और उनकी आँखें चित्रित होती हैं, अतः, इस दिन उन्हें पुनः चित्रित किया जाता है. यह एक तरह से उनके ‘स्वस्थ’ और ‘तैयार’ होने की घोषणा है.
रथ यात्रा की प्रस्तावना
नेत्रोत्सव रथ यात्रा की एक महत्वपूर्ण प्रस्तावना भी है. भगवान का नवयौवन दर्शन इस बात का संकेत है कि वे अब भव्य रथ यात्रा के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. यह भक्तों में भी उत्साह भर देता है, क्योंकि वे जानते हैं कि अब भगवान स्वयं उनके बीच आने वाले हैं.
त्यागराज नगर में नेत्रोत्सव का भव्य आयोजन!
दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी की सभी परंपराओं को दिल्ली में पूरी निष्ठा के साथ निभाता है. नेत्रोत्सव का पर्व भी यहाँ बड़े ही उत्साह और भक्ति-भाव के साथ मनाया जाता है.
दिव्य श्रृंगार और नेत्र चित्रकारी
नेत्रोत्सव के दिन सुबह, पुजारी और सेवादार अत्यंत गोपनीयता और भक्ति के साथ भगवान के नेत्रों को फिर से चित्रित करते हैं. इस कार्य में विशेष रंग और पारंपरिक विधियों का उपयोग किया जाता है. भगवान के नेत्रों के फिर से बनने का मतलब है कि वे अब भक्तों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं. यह उनके पूर्ण स्वास्थ्य लाभ का प्रतीक है.
फूलों से सजी वेदी और भव्य दर्शन
मंदिर के गर्भगृह और स्नान मंडप को इस दिन विशेष रूप से फूलों और सुंदर वस्त्रों से सजाया जाता है. जैसे ही भगवान नवयौवन रूप में प्रकट होते हैं, मंदिर का वातावरण ‘जय जगन्नाथ’ के नारों से गूँज उठता है. भक्तगण लंबी कतारों में लगकर अपने आराध्य के इस दिव्य और युवा स्वरूप के दर्शन करते हैं. यह दर्शन भक्तों के लिए 15 दिनों के इंतजार का फल होता है.
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और महाप्रसाद
नेत्रोत्सव के दौरान, मंदिर परिसर में भजन-कीर्तन और ओड़िया सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजित की जाती हैं. भक्ति संगीत की मधुर धुनें पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती हैं. इसके अतिरिक्त, भक्तों को महाप्रसाद (पवित्र भोजन) भी वितरित किया जाता है. यह भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है. सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता की जाती है, ताकि भक्त बिना किसी परेशानी के दर्शन कर सकें.
नेत्रोत्सव का आध्यात्मिक महत्व
यह पर्व सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखता है:
- आशा और नवीनीकरण: यह ‘बीमारी’ के बाद ‘स्वस्थ’ होने का प्रतीक है. वास्तव में, यह जीवन में आशा और नवीनीकरण के महत्व को दर्शाता है
- भक्तों का समर्पण: यह भगवान के प्रति भक्तों के अटूट धैर्य और प्रेम को दिखाता है
- आध्यात्मिक ऊर्जा: इस दिन मंदिर में एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. यह भक्तों को मानसिक शांति और आनंद प्रदान करती है
- रथ यात्रा की तैयारी: नेत्रोत्सव रथ यात्रा के लिए देवताओं की तैयारी का अंतिम चरण होता है. यह भक्तों को आने वाले भव्य उत्सव के लिए उत्साहित करता है.
निष्कर्ष
नेत्रोत्सव 2025 त्यागराज नगर में ऐसा पर्व होगा जो भक्तों को 15 दिनों के विरह के बाद अपने प्रिय भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के नवयौवन दर्शन का अवसर प्रदान करेगा. यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, धैर्य और पुनरुत्थान का एक शानदार उत्सव है. यह पर्व हमें सिखाता है कि कठिन समय के बाद हमेशा एक नया सवेरा आता है. त्यागराज नगर का यह मंदिर पुरी की महान परंपरा को दिल्ली में जीवंत रखकर, भक्तों को इस दिव्य अनुभव का भागीदार बनने का अवसर देता है. इस दिन मंदिर में उपस्थित होकर आप भी इस अलौकिक ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं.
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📍 स्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली
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आपके सवाल, हमारे जवाब – श्री जगन्नाथ मंदिर FAQs
नेत्रोत्सव ‘नेत्र’ (आँखें) और ‘उत्सव’ का संगम है. यह वह पर्व है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के नेत्रों को फिर से चित्रित किया जाता है. यह देवस्नान पूर्णिमा के बाद 15 दिनों के ‘अनवसर’ काल के ठीक बाद, रथ यात्रा से एक दिन पहले मनाया जाता है. इस साल (2025 में), यह 26 जून को है.
‘नव्यौवन दर्शन’ का मतलब है भगवान का नया और युवा रूप. ‘अनवसर’ काल में ‘बीमार’ होने के बाद, नेत्रोत्सव के दिन भगवान पूरी तरह से स्वस्थ और ऊर्जावान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं. यह उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक है.
देवस्नान पूर्णिमा पर 108 घड़ों से स्नान कराने के कारण पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ‘अस्वस्थ’ हो जाते हैं. इस ‘अनवसर’ काल (लगभग 15 दिन) में वे एकांत में आराम करते हैं और आयुर्वेदिक उपचार लेते हैं, ताकि रथ यात्रा के लिए पूरी तरह स्वस्थ हो सकें.
नेत्रोत्सव रथ यात्रा की सीधी प्रस्तावना है. यह भगवान के ‘स्वस्थ’ होने और उनकी भव्य यात्रा के लिए ‘तैयार’ होने का संकेत है. इस दर्शन के बाद ही भक्त रथ यात्रा के लिए उत्साहित होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि भगवान अब उनके बीच आने वाले हैं.
दिल्ली का श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, पुरी की परंपराओं का पालन करता है. नेत्रोत्सव के दिन, पुजारी गोपनीयता से देवताओं के नेत्रों को फिर से चित्रित करते हैं. मंदिर को फूलों से सजाया जाता है, और भक्त लंबी कतारों में लगकर भगवान के नवयौवन स्वरूप के दर्शन करते हैं. भजन-कीर्तन और महाप्रसाद वितरण भी होता है.
नहीं, ‘अनवसर’ काल के 15 दिनों के दौरान भक्त मुख्य देवताओं के दर्शन नहीं कर पाते. इस समय भगवान एकांत में ‘स्वास्थ्य लाभ’ कर रहे होते हैं.