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दिल्ली के त्यागराज नगर में मनाएं 58वीं रथ यात्रा 2025: जगन्नाथ मंदिर का अद्भुत उत्सव!

58वीं रथ यात्रा 2025: दिल्ली के जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में मनाएं महापर्व!

जैसे ही जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का पावन समय पास आ रहा है, हम दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में एक खास उत्साह से भर जाते हैं। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ का अपने भक्तों से मिलने आने का महापर्व है, जिसकी 58वीं वर्षगांठ इस साल हम मनाने जा रहे हैं। हमारा जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, पिछले 58 सालों से इस भव्य परंपरा को निभाता आ रहा है।

आइए, इस रथ यात्रा के गहरे अर्थ को समझें, इसके खास रीति-रिवाजों को जानें, और देखें कि हम त्यागराज नगर के अपने प्यारे जगन्नाथ मंदिर में इस दिव्य उत्सव को कैसे मनाते हैं।

रथ यात्रा: एक पुराना इतिहास और इसकी शुरुआत की कहानी

रथ यात्रा एक बहुत ही पुराना और खास त्योहार है, जो भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा को समर्पित है। इसकी जड़ें ओडिशा के पुरी में हैं, जहाँ यह सदियों से मनाया जा रहा है।

भगवान जगन्नाथ और रथ यात्रा का जन्म: 

मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अपने आप प्रकट हुई थी। कहा जाता है कि वे पहले नीलमाधव के रूप में पूजे जाते थे। फिर, उनकी मूर्ति एक खास दिव्य पेड़ से बनाई गई, जिसे खुद भगवान विश्वकर्मा ने रूप दिया था। इसी अनोखी मूर्ति के बनने और स्थापित होने से रथ यात्रा की शुरुआत हुई। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ की अपनी जन्मभूमि (गुण्डीचा मंदिर) में भाई-बहनों के साथ हर साल होने वाली यात्रा की याद दिलाता है। इस यात्रा का मतलब है कि भगवान मंदिर की दीवारों से बाहर आकर हर भक्त को दर्शन देना चाहते हैं, चाहे कोई भी उनकी जाति या समाज में उनका स्थान हो। कहते हैं कि रथों पर भगवान के दर्शन मात्र से ही मन शांत हो जाता है और बहुत आशीर्वाद मिलता है।

यह उत्सव कई सौ सालों से चला आ रहा है। पुराने रिकॉर्ड और किताबें भी इसकी भव्यता और धार्मिक महत्व को बताते हैं। यह एक ऐसी परंपरा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है, समय के साथ बदली है, लेकिन अपना असली सार नहीं भूली है।

रथ यात्रा का गहरा मतलब: यह सिर्फ एक शोभायात्रा से कहीं बढ़कर क्यों है?

रथ यात्रा की गहराई इसकी भव्यता से भी ज़्यादा है। इसमें कई गहरे मतलब छिपे हैं:

  • सबको दर्शन: मंदिर के अंदर, जहाँ शायद हर कोई नहीं जा पाता, वहाँ भगवान खुद सड़कों पर आते हैं। वे हर किसी को, बिना किसी भेदभाव के, दर्शन देते हैं। यह भगवान की दया और सबके लिए प्यार को दिखाता है।
  • गुण्डीचा मंदिर की यात्रा: भगवान का अपनी जन्मभूमि या बगीचे वाले घर लौटना, एक तरह से “बीमारी” (अनवसर) के बाद ताजगी और ठीक होने का समय है। यह हमें दिखाता है कि जीवन में आराम और नई शुरुआत का भी महत्व है।
  • भगवान से सीधा जुड़ाव: भक्त अपने हाथों से बड़े-बड़े रथों को खींचते हैं। यह भगवान की यात्रा में भक्तों की सीधी भागीदारी दिखाता है। सेवा का यह काम बहुत पुण्य का माना जाता है, जिससे भक्त और भगवान के बीच एक मजबूत रिश्ता बनता है।
  • बुराई पर अच्छाई की जीत: कुछ लोग मानते हैं कि रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ की जीत की यात्रा है, जो दिखाता है कि हमेशा धर्म की जीत होती है।
  • रथ का मतलब: रथ खुद हमारे शरीर जैसा है, और भगवान हमारी आत्मा हैं। यह यात्रा जीवन की यात्रा जैसी है, जहाँ आत्मा (भगवान) दुनिया (रथ) में रहती है, और बुद्धि और भक्ति (भक्तों द्वारा खींची गई रस्सियाँ) हमें सही रास्ता दिखाती हैं।

खास रीति-रिवाज: उत्सव का दिल

रथ यात्रा सिर्फ एक दिन का त्योहार नहीं है, बल्कि यह कई खास रीति-रिवाजों का सिलसिला है, जो बड़े जुलूस तक और उसके बाद भी चलता रहता है।

  • देबस्नान पूर्णिमा/स्नान यात्रा (11 जून, 2025, बुधवार): इस दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पवित्र जल से शाही स्नान कराया जाता है। इस बड़े स्नान के बाद, देवता 15 दिनों के लिए भक्तों को दर्शन नहीं देते।
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  • नेत्रोत्सव और नवयौवन दर्शन (26 जून, 2025, गुरुवार): एकांतवास के बाद, देवताओं की आँखों को फिर से रंगा जाता है। वे “नये और जवान” रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं, जैसे बीमारी से ठीक होकर लौटे हों।
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  • रथ यात्रा (27 जून, 2025, शुक्रवार): यह रथ यात्रा का मुख्य दिन है! इस दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने विशाल और सुंदर रथों पर सवार होकर नगर में निकलते हैं। भक्त उत्साह से इन रथों को खींचते हैं।
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  • हेरा पंचमी (01 जुलाई, 2025, मंगलवार): रथ यात्रा के पांचवें दिन, देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान जगन्नाथ से मिलने मौसी माँ मंदिर जाती हैं, क्योंकि भगवान उन्हें पीछे छोड़ आए थे। यह गुस्से और प्यार का एक खास मिलन है।
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  • बाहुड़ा यात्रा (05 जुलाई, 2025, शनिवार): यह देवताओं की अपने मुख्य मंदिर में वापसी की यात्रा है। रथ गुण्डीचा मंदिर (या अस्थायी निवास) से अपनी यात्रा पूरी कर वापस लौटते हैं।
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  • सुना वेश (06 जुलाई, 2025, रविवार): बाहुड़ा यात्रा के अगले दिन, देवताओं को उनके रथों पर सुनहरे गहनों से सजाया जाता है। यह भगवान का सबसे दिव्य और चमकदार रूप होता है, जिसे देखने के लिए भक्त बड़ी संख्या में आते हैं।
  • आधार पाणा (07 जुलाई, 2025, सोमवार): इस दिन, देवताओं को उनके रथों पर रहते हुए एक खास मीठा पेय ‘पाणा’ चढ़ाया जाता है। यह देवताओं को तृप्त करने और आशीर्वाद पाने का अनुष्ठान है।
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  • नीलाद्री बिजे (08 जुलाई, 2025, मंगलवार): यह रथ यात्रा उत्सव का आखिरी दिन है। इस दिन देवताओं को धूमधाम और भक्ति के साथ वापस मुख्य मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही रथ यात्रा का भव्य समापन होता है।

संस्कृति में इसका महत्व: एक ज़िंदा विरासत

अपने धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं के अलावा, रथ यात्रा का संस्कृति में भी बहुत महत्व है:

  • एकजुटता: यह ऐसा समय है जब सभी लोग, बिना किसी भेदभाव के, एक साथ आते हैं। वे मिलकर भक्ति करते हैं और जश्न मनाते हैं। लाखों भक्त एक साथ रथ खींचते हैं, भजन गाते हैं और जयकारे लगाते हैं, जिससे सब एक महसूस करते हैं।
  • कला और कारीगरी: बड़े-बड़े रथों को बनाना, उन्हें सजाना, और सारे रीति-रिवाजों में कई कारीगर शामिल होते हैं। इससे पुरानी कला और हुनर बचे रहते हैं। रथों पर की गई नक्काशी और पेंटिंग भारतीय कला का बेहतरीन नमूना होती हैं।
  • संगीत और नाच: इस त्योहार में जोश भरे मंत्र, भक्ति गीत (भजन), और पारंपरिक नृत्य जैसे ओडिसी और संबलपुरी डांस भी होते हैं, जो उत्सव का माहौल बनाते हैं। ढोल, झांझ और शंख की आवाज़ से पूरा इलाका गूंज उठता है।
  • सबको शामिल करने वाला त्योहार: रथ यात्रा की सबसे अच्छी बात यह है कि यह किसी भी जाति, धर्म या समुदाय के लिए खुला है। सड़कों पर रथ खींचने के लिए हर कोई एक साथ आता है, जो एकता और भाईचारे का प्रतीक है।

जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में रथ यात्रा 2025 का भव्य उत्सव

हम जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में इस पावन परंपरा को जारी रखने पर गर्व महसूस करते हैं। हम पुरी की रथ यात्रा की भावना को दिल्ली के अपने प्यारे शहर में लाते हैं। हमारे उत्सव पुरी की बड़ी परंपराओं जैसे ही होते हैं, जिससे दिल्ली के भक्तों को भी इस अनोखे त्योहार का आशीर्वाद और खुशी महसूस होती है। यह हमारी 58वीं रथ यात्रा है, जो इस बात का सबूत है कि हमारी आस्था और परंपरा कितनी मजबूत है।

दिनांकदिनजगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में कार्यक्रम का विवरण
11 जून, 2025बुधवारदेबस्नान पूर्णिमा/स्नान यात्रा: इस खास दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को पवित्र जल से बड़े स्नान कराए जाते हैं। इस स्नान के बाद, देवता 15 दिनों के लिए भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं, जिसे अनवसर काल कहते हैं।
26 जून, 2025गुरुवारनेत्रोत्सव और नवयौवन दर्शन: एकांतवास के बाद, देवता वापस आते हैं। उनके नेत्रों का फिर से रंग-रोगन किया जाता है, और वे “नये और जवान” रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। यह भक्तों के लिए बहुत खास दिन होता है जब वे अपने आराध्य को फिर से देखते हैं।
27 जून, 2025शुक्रवाररथ यात्रा (महापर्व): यह सबसे बड़ा दिन होता है! भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने बड़े-बड़े रथों पर सवार होकर मंदिर से बाहर निकलते हैं और नगर में भ्रमण करते हैं। हजारों भक्त इन रथों को खींचते हैं, जयकारे लगाते हैं और भजन गाते हुए भगवान के साथ चलते हैं।
01 जुलाई, 2025मंगलवारहेरा पंचमी: रथ यात्रा के पांचवें दिन, देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान जगन्नाथ से मिलने मौसी माँ मंदिर जाती हैं, क्योंकि भगवान उन्हें पीछे छोड़ आए थे। यह देवी लक्ष्मी के प्रेम और नाराजगी को दर्शाने वाला एक रोचक अनुष्ठान है।
05 जुलाई, 2025शनिवारबाहुड़ा यात्रा: यह देवताओं की अपने मुख्य मंदिर में वापसी की यात्रा है। रथ अपने सफर को पूरा कर वापस जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर लौटते हैं। इस दिन भी भक्त रथों को खींचकर भगवान का स्वागत करते हैं।
06 जुलाई, 2025रविवारसुना वेश: बाहुड़ा यात्रा के अगले दिन, देवताओं को उनके रथों पर ही भव्य सुनहरे गहनों से सजाया जाता है। यह भगवान का सबसे शाही और चमकदार रूप होता है, जिसे देखकर भक्त धन्य महसूस करते हैं।
07 जुलाई, 2025सोमवारआधार पाणा: इस दिन, देवताओं को उनके रथों पर रहते हुए एक खास मीठा पेय ‘पाणा’ चढ़ाया जाता है। यह देवताओं को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद पाने का अनुष्ठान है, जिसे केवल उनके लिए ही तैयार किया जाता है।
08 जुलाई, 2025मंगलवारनीलाद्री बिजे: यह रथ यात्रा उत्सव का आखिरी दिन है। इस दिन देवताओं को धूमधाम और भक्ति के साथ वापस मुख्य मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही रथ यात्रा का भव्य समापन होता है, और भक्त अगले साल का इंतजार करते हैं।

हम सभी भक्तों, परिवारों और जिज्ञासु मन वालों को इन शुभ आयोजनों में शामिल होने के लिए दिल से आमंत्रित करते हैं। यहाँ आकर भक्ति को महसूस करें, पवित्र रथों को खींचने में भाग लें, और इस अविश्वसनीय उत्सव के दौरान त्यागराज नगर में फैली दिव्य ऊर्जा में डूब जाएँ। यह कई दिनों का उत्सव है जहाँ हर दिन का अपना खास महत्व है और हम उस दिन उसी के अनुसार अनुष्ठान करते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्र1: रथ यात्रा क्या है और यह 2025 में कब मनाई जाती है? उ1: रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को समर्पित एक बड़ा हिंदू त्योहार है। 2025 में, मुख्य रथ यात्रा जुलूस 27 जून (शुक्रवार) को है। हमारे मंदिर में कार्यक्रम 11 जून से 8 जुलाई तक चलेंगे।

प्र2: रथ यात्रा का आध्यात्मिक महत्व क्या है? उ2: रथ यात्रा का मतलब है कि भगवान जगन्नाथ बिना किसी भेदभाव के सभी भक्तों को दर्शन देने बाहर आते हैं। यह प्यार, करुणा और आत्मा की यात्रा का प्रतीक है। रथ खींचना बहुत पुण्य का काम माना जाता है।

प्र3: क्या मैं जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में रथ यात्रा 2025 के उत्सवों में भाग ले सकता हूँ? उ3: हाँ, बिल्कुल! हम सभी भक्तों का स्वागत करते हैं। आप रथ यात्रा के दिन (27 जून) और बाहुड़ा यात्रा के दिन (05 जुलाई) रथ खींचने सहित कई कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं। कृपया ऊपर दिया गया पूरा कार्यक्रम देखें।

प्र4: रथ यात्रा के खास रीति-रिवाज क्या हैं? उ4: मुख्य रीति-रिवाजों में देबस्नान पूर्णिमा, नेत्रोत्सव, रथ यात्रा, हेरा पंचमी, बाहुड़ा यात्रा, सुना वेश, आधार पाणा और नीलाद्री बिजे शामिल हैं।

प्र5: क्या दिल्ली में रथ यात्रा पर सरकारी छुट्टी होती है? उ5: रथ यात्रा एक बड़ा त्योहार है, लेकिन यह दिल्ली में हर जगह सरकारी छुट्टी नहीं होती है। हालांकि, कुछ निजी संस्थान या समुदाय छुट्टी रख सकते हैं। आपको अपने दफ्तर या स्थानीय प्रशासन से पता करना चाहिए।

प्र6: महाप्रसाद क्या है, और क्या मैं त्योहार के दौरान इसे ले सकता हूँ? उ6: महाप्रसाद भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाला पवित्र भोजन है, जिसे बाद में भक्तों को दिया जाता है। इसे बहुत पवित्र माना जाता है। हाँ, जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में त्योहार के दौरान महाप्रसाद बांटने का इंतजाम होता है।

निष्कर्ष: भक्ति और उत्सव का एक कभी न खत्म होने वाला सफर

रथ यात्रा सिर्फ एक सालाना त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारे सनातन धर्म की जीवंतता, भाईचारे और भगवान के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि भगवान सिर्फ मंदिरों में नहीं रहते, बल्कि वे अपने भक्तों के बीच आते हैं, उनके दुखों को दूर करते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह त्योहार हर साल हमें याद दिलाता है कि विनम्रता, सेवा और सच्चा प्यार ही हमें भगवान से जोड़ता है।

जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर में, हमें इस शानदार परंपरा को निभाते रहने पर बहुत गर्व है। हमारे लिए यह सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि एक मौका है जहाँ हम सब मिलकर भगवान जगन्नाथ की जय-जयकार करते हैं, अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं और भक्ति के रास्ते पर एक साथ चलते हैं। हम आपको रथ यात्रा 2025 में हमारे साथ जुड़ने और इस खास आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा बनने के लिए दिल से बुलाते हैं। आइए, हम सब मिलकर रथों को खींचें, भगवान का आशीर्वाद लें और भक्ति के इस बड़े सागर में डूब जाएं। जय जगन्नाथ!

📍 स्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली                              🌐 www.shrijagannathmandirdelhi.in

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