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नरसिंह पूजा 2025 | 11 मई को जुड़ें दिल्ली के सबसे शक्तिशाली उत्सव में

नरसिंह भगवान की पूजा सनातन धर्म के उन पवित्र क्षणों में से एक है जो भक्ति, शक्ति और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन चुका है। इस वर्ष यह विशेष पूजा 11 मई 2025 (रविवार) को श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली में भव्य रूप से आयोजित की जा रही है। 🔱 नरसिंह भगवान कौन हैं? भगवान नरसिंह, भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं, जिन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आधे मानव और आधे सिंह के रूप में अवतार लिया था। उन्होंने राक्षस राजा हिरण्यकश्यप का संहार कर यह सिद्ध किया कि जब भक्त की आस्था अडिग होती है, तो भगवान स्वयं प्रकट होकर उसकी रक्षा करते हैं। यह अवतार धर्म और अधर्म के बीच स्पष्ट अंतर को दर्शाता है। 🛕 पूजा कार्यक्रम और समय – 11 मई 2025 स्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली – 110003 तिथि: रविवार, 11 मई 2025 पूजा एवं अनुष्ठान का

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56 भोग 2025 – श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज में महाप्रसाद आयोजन

56 भोग, भगवान जगन्नाथ को अर्पित वह दिव्य प्रसाद है जिसमें 56 प्रकार के पारंपरिक व्यंजन शामिल होते हैं। यह अनुष्ठान विशेष अवसरों पर किया जाता है, और इस वर्ष यह आयोजन 11 जून 2025 को स्नान पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज, नई दिल्ली में भक्ति और उल्लास के साथ संपन्न होगा। 🌾 56 भोग का महत्व क्या है? भगवान जगन्नाथ की नित्य सेवा में 56 भोग अर्पित करने की परंपरा बहुत प्राचीन है। माना जाता है कि भगवान प्रतिदिन आठ पहरों में भोजन करते हैं, और दो दिन के उपवास (रथ यात्रा के पहले) के पश्चात यह विशेष महाभोज उन्हें अर्पित किया जाता है। यह प्रसाद न केवल ईश्वर को अर्पित करने का माध्यम है, बल्कि भक्तों को कृपा और समृद्धि का अनुभव भी कराता है। 📜 इतिहास और परंपरा 56 भोग की परंपरा मूल रूप से पुरी, ओडिशा से आती है, जहां भगवान जगन्नाथ

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चंदन यात्रा 2025 – जगन्नाथ मंदिर त्यागराज, दिल्ली में अनुष्ठान, तिथियाँ और आध्यात्मिक विशेषताएँ

चंदन यात्रा 2025 इस वर्ष 08 मई 2025 से 12 मई 2025 तक, एकादशी से पूर्णिमा के मध्य, श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली में आस्था और परंपरा के साथ मनाई जा रही है। गर्मियों के आरंभ में यह पर्व न केवल मंदिर परिसर को पवित्रता और भक्ति से भर देता है, बल्कि श्रद्धालुओं के मन को भी शीतल करता है। हर संध्या, मंदिर परिक्रमा, चंदन लेपन और नौका विहार के आयोजन में भाग लेने वाले सैकड़ों भक्त एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। 🌿 चंदन यात्रा क्या है? चंदन यात्रा, जिसका शाब्दिक अर्थ है “चंदन की यात्रा”, एक ग्रीष्मकालीन उत्सव है जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को गर्मी से राहत देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस अनुष्ठान में भगवान की मूर्तियों पर चंदन का लेप किया जाता है, उन्हें शीतल पेय अर्पित किए जाते हैं और शाम को उन्हें सजाकर मंदिर परिसर

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श्री श्याम मिलन संकीर्तन का भव्य आयोजन पहली बार श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली

🙏 “जहाँ प्रेम है, वहीं प्रभु का वास है।” इसी प्रेम और भक्ति की एक अद्वितीय मिसाल देखने को मिली 28 अप्रैल 2025 को, जब पहली बार श्री श्याम मिलन परिवार कोटला मुबारकपुर (रजि.) ने श्री श्याम प्रभु का 262वाँ श्री श्याम मिलन संकीर्तन श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली में आयोजित किया। यह आयोजन इसलिए भी विशेष रहा क्योंकि पिछले 25 वर्षों से लगातार दिल्ली-एनसीआर और अन्य स्थानों में संकीर्तन कर रही इस प्रतिष्ठित मंडली ने पहली बार श्री जगन्नाथ मंदिर, प्रेम नगर, त्यागराज स्टेडियम के सामने, नई दिल्ली में यह भव्य भक्ति संध्या रखी। कार्यक्रम न केवल सफल रहा बल्कि भक्तों के उत्साह, ऊर्जा, और प्रेम ने इसे ऐतिहासिक बना दिया। 📅 आयोजन की तारीख और समय दिनांक: सोमवार, 28 अप्रैल 2025समय: सायं 6:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तकस्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, प्रेम नगर, त्यागराज स्टेडियम के सामने, नई दिल्ली 🎤 भजन संध्या की शुरुआत –

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माँ जगन्नाथ रथ निर्माण पूजा – श्री जगन्नाथ मंदिर दिल्ली में अक्षय तृतीया पर शुभारंभ

माँ जगन्नाथ रथ निर्माण पूजा दिल्ली – श्री जगन्नाथ मंदिर में शुभारंभ माँ जगन्नाथ रथ निर्माण पूजा दिल्ली में हर वर्ष श्रद्धा और परंपरा के साथ अक्षय तृतीया के दिन रथ यात्रा की शुरुआत होती है। यह दिन धार्मिक रूप से अत्यंत शुभ माना जाता है और श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली में रथ निर्माण की विधि का शुभारंभ इसी दिन किया जाता है। 📜 परंपरा और महत्व अक्षय तृतीया पर माँ जगन्नाथ रथ निर्माण पूजा दिल्ली में रथ यात्रा की तैयारी का प्रथम चरण होता है। इस दिन भगवान श्री जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए तीन रथों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है। मंदिर के सेवायत और पुजारी विशेष मंत्रों और विधियों के साथ लकड़ी पर पहली चोट करते हैं, जिसे ‘पहली पूजा’ कहा जाता है। 🛕 आयोजन का स्थान और समय तिथि: अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया) समय: प्रातः 5:00 बजे

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पणा संक्रांति श्री जगन्नाथ मंदिर, दिल्ली में पारंपरिक आस्था और उल्लास का संगम

भारत विविधता में एकता का प्रतीक है और यहां के त्योहार इसकी जीवंत मिसाल हैं। उन्हीं में से एक है पणा संक्रांति, जो विशेष रूप से ओडिशा में मनाया जाने वाला पारंपरिक पर्व है। यह त्योहार न केवल मौसम के बदलाव को दर्शाता है, बल्कि नई ऊर्जा, उर्वरता और धर्म के प्रति आस्था का प्रतीक भी है। श्री जगन्नाथ मंदिर, थायगराज नगर, नई दिल्ली में इस वर्ष पणा संक्रांति को भव्य रूप से मनाया जा रहा है। यह मंदिर दिल्ली में ओड़िया संस्कृति का मुख्य केंद्र है, जहां हर साल यह पर्व श्रद्धा, भक्ति और उत्साह से भरा होता है। 🌞 पणा संक्रांति क्या है? पणा संक्रांति, जिसे ओडिशा में ‘महाविषुब संक्रांति’ भी कहा जाता है, सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के अवसर पर मनाई जाती है। यह भारतीय नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है और मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के आगमन को दर्शाता है।

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छेना पोड़ा दिवस – भक्ति, संस्कृति और स्वाद का मीठा उत्सव

भारत विविधताओं से भरा एक ऐसा देश है जहाँ हर त्यौहार अपने साथ एक गहरी आस्था, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विशेष व्यंजन लेकर आता है। इन्हीं विशेष उत्सवों में से एक है छेना पोड़ा दिवस, जो ओडिशा के प्रसिद्ध और भगवान जगन्नाथ को प्रिय मिठाई छेना पोड़ा को समर्पित है। यह मिठाई न सिर्फ स्वाद में अनूठी है, बल्कि इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक गहराई इसे और भी खास बनाती है। क्या है छेना पोड़ा? “छेना पोड़ा” का शाब्दिक अर्थ है — “जला हुआ पनीर”। यह मिठाई ताजे छेना (पनीर), चीनी, सूजी, इलायची और कभी-कभी सूखे मेवों से तैयार की जाती है। इसे पारंपरिक रूप से सल के पत्तों में लपेटकर धीमी आंच पर बेक किया जाता है, जिससे इसका बाहरी हिस्सा सुनहरा और हल्का जला हुआ बन जाता है, जो इसके स्वाद में एक खास तरह की करमलाइज्ड मिठास और खुशबू भर देता है। छेना पोड़ा की कहानी – एक स्वादिष्ट

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माँ सिद्धिदात्री की कथा एवं आरती

माँ सिद्धिदात्री नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन पूजित होती हैं। वे सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी हैं। इनके पूजन से भक्तों को अष्ट सिद्धियाँ (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व) प्राप्त होती हैं। पौराणिक कथा भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री की कृपा से ही सभी सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी शक्ति से ही भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। माँ सिद्धिदात्री सृष्टि की अंतिम शक्ति हैं, जो भक्तों को संपूर्ण आध्यात्मिक एवं लौकिक सिद्धियों का वरदान देती हैं। माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें गदा, चक्र, शंख और कमल सुशोभित हैं। वे सर्वसिद्धि दायिनी हैं और भक्तों को मोक्ष प्रदान करती हैं। वे संसार के समस्त दुखों को हरने वाली हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व जीवन में सिद्धियों एवं आत्मबल की प्राप्ति होती है। धन, ऐश्वर्य, सुख और मोक्ष

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माँ महागौरी की कथा एवं आरती

माँ महागौरी नवरात्रि के आठवें दिन पूजित होती हैं। वे श्वेत रंग की, अति शांत, करुणामयी और तेजस्वी देवी हैं। उनका स्वरूप पूर्ण रूप से शुद्धता और कल्याण का प्रतीक है। पौराणिक कथा जब माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, तब वे कई वर्षों तक घने जंगलों में रहीं और इस कारण उनका शरीर धूल और मिट्टी से ढक गया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें गंगाजल से स्नान कराया, जिससे वे अति गौर वर्ण की हो गईं और तब से वे महागौरी के नाम से विख्यात हुईं। माँ महागौरी का स्वरूप उनका वर्ण गौरा (श्वेत) रंग का है। वे चार भुजाओं वाली हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में अभयमुद्रा है। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं। वे शांत, करुणामयी और दयालु हैं। माँ महागौरी की पूजा का महत्व माँ की कृपा से सभी

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माँ कालरात्रि की कथा एवं आरती

माँ कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन पूजित होती हैं। ये भय, नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाली देवी हैं। इनका स्वरूप अत्यंत उग्र है, लेकिन भक्तों के लिए ये मंगलकारी होती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकारी भी कहा जाता है। पौराणिक कथा एक बार रक्तबीज नामक असुर का आतंक पूरे ब्रह्मांड में फैल गया था। वह अपनी शक्ति से स्वयं की कई संतान उत्पन्न कर लेता था। उसके वध के लिए माँ दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण किया। माँ ने अपनी जिह्वा से रक्तबीज का सारा रक्त सोख लिया और उसका अंत कर दिया। तभी से माँ कालरात्रि भय को नष्ट करने वाली देवी मानी जाती हैं। माँ कालरात्रि का स्वरूप माँ कालरात्रि का रंग काला है। वे गर्दभ (गधा) की सवारी करती हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें वे खड्ग (तलवार), वज्र और वरमुद्रा धारण करती हैं। उनकी तीव्र दृष्टि मात्र से दुष्ट शक्तियां नष्ट हो

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