बाहुड़ा यात्रा दिल्ली: लाखों भक्तों संग करें भगवान की भव्य घर वापसी का स्वागत!
दस दिनों के प्रवास के बाद, जब अपने प्रिय लौटते हैं, तो कैसा लगता है? एक अनूठा उत्साह, एक अलग ही खुशी और अपनेपन का एहसास! यही भावना दिल्ली के त्यागराज नगर में उमड़ती है. यह वो पल होता है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपनी वार्षिक बाहुड़ा यात्रा 2025 पर वापस लौटते हैं.
05 जुलाई, 2025 को, त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में, भगवान की भव्य रथ यात्रा का दूसरा चरण देखने को मिलेगा. यह सिर्फ रथों की वापसी नहीं, बल्कि भक्तों की प्रतीक्षा का सुखद अंत है. साथ ही, यह एक ऐसा पर्व है जो विरह के बाद मिलन का आनंद लाता है. आइए, इस ‘घर वापसी’ यात्रा के महत्व, इसकी परंपराओं और त्यागराज नगर में इसके भव्य आयोजन को गहराई से जानें.
बाहुड़ा यात्रा: एक वापसी जो उत्सव बन गई!
‘बाहुड़ा’ का शाब्दिक अर्थ है ‘वापसी’ या ‘लौटना’. रथ यात्रा के नौ दिनों के बाद, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपनी मौसी माँ गुंडिचा के मंदिर से अपने मुख्य मंदिर, श्री मंदिर, वापस लौटते हैं. यह यात्रा उतनी ही महत्वपूर्ण और आनंदमय होती है जितनी मुख्य रथ यात्रा.
घर वापसी का उल्लास
यह यात्रा एक परिवार के सदस्यों की घर वापसी के समान है. भक्तगण जानते हैं कि उनके आराध्य अब अपने मूल निवास पर लौट रहे हैं. इसलिए, वे इस वापसी का उतने ही उत्साह और भक्ति से स्वागत करते हैं, जितना उन्होंने उनके जाने का किया था. इस दौरान, माहौल में एक अलग तरह की ऊर्जा और अपनेपन का एहसास घुल जाता है. यह विरह के बाद के मिलन का उत्सव है. यहाँ भक्तों की वर्षों की साधना और प्रेम सफल होता है.
रथों की उल्टी दिशा में यात्रा
रथ यात्रा में रथ गुंडिचा मंदिर की ओर बढ़ते हैं. हालांकि, बाहुड़ा यात्रा में वे ठीक विपरीत दिशा में मुख्य मंदिर की ओर खींचे जाते हैं. यह एक प्रतीकात्मक यात्रा है. यह दर्शाती है कि जीवन में हर आगे बढ़ने के बाद, जड़ों की ओर लौटना भी उतना ही आवश्यक है. इस प्रकार, यह संतुलन और निरंतरता का संदेश देती है.
बाहुड़ा यात्रा की पृष्ठभूमि: लीला का समापन
बाहुड़ा यात्रा सीधे तौर पर रथ यात्रा की लीला के समापन से जुड़ी है. भगवान जगन्नाथ दस दिनों तक गुंडिचा मंदिर में विश्राम करते हैं. इस दौरान, उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग लगाए जाते हैं और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
मौसी के घर का प्रवास
गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ का ‘जन्म स्थान’ माना जाता है, या कुछ मान्यताओं में उनकी मौसी का घर. दस दिनों तक यहाँ प्रवास करने के बाद, भगवान अब अपने ‘कर्म क्षेत्र’ यानी मुख्य मंदिर लौटने के लिए तैयार होते हैं. इस प्रवास के दौरान, हेरा पंचमी जैसी लीलाएँ भी होती हैं. यह सब बाहुड़ा यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार करता है.
रथ यात्रा के चक्र का पूर्ण होना
बाहुड़ा यात्रा रथ यात्रा के पूरे चक्र को पूर्ण करती है. यह इस बात का प्रतीक है कि जीवन की हर यात्रा का एक गंतव्य होता है. साथ ही, हर प्रस्थान के बाद वापसी निश्चित है. यह भगवान की लीला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह भक्तों को जीवन के शाश्वत चक्र को समझने में मदद करता है. इसके अतिरिक्त, यह भक्तों के लिए एक और अवसर है, जहाँ वे भगवान को अपने हाथों से खींचकर सेवा कर सकते हैं.
त्यागराज नगर में बाहुड़ा यात्रा का भव्य आयोजन!
दिल्ली के त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी की रथ यात्रा परंपरा को दिल्ली में पूरी भव्यता से निभाता है. बाहुड़ा यात्रा भी यहाँ उसी श्रद्धा और उत्साह से मनाई जाती है.
रथों की तैयारी और शुद्धि
बाहुड़ा यात्रा से पहले, रथों को पुनः सजाया और पवित्र किया जाता है. उन्हें फूलों, रंगीन वस्त्रों और झंडों से फिर से सजाया जाता है. मुख्य मंदिर की ओर लौटने के लिए रथों को तैयार किया जाता है. यह एक विशेष तैयारी का समय होता है, जहाँ सेवादार और स्वयंसेवक उत्साह से काम करते हैं.
पहांडी और रथ खींचने का उत्साह
ठीक मुख्य रथ यात्रा की तरह, बाहुड़ा यात्रा में भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को ‘पहांडी’ विधि से गुंडिचा मंदिर (या अस्थायी गुंडिचा मंदिर) से रथों तक लाया जाता है. एक बार जब देवता रथों पर विराजमान हो जाते हैं, तो हजारों भक्त रस्सियों को खींचकर रथों को मुख्य मंदिर की ओर बढ़ाते हैं. ‘जय जगन्नाथ’, ‘हरि बोल’ और ‘जय बलभद्र’ के जोरदार नारों से पूरा वातावरण गूँज उठता है. यह दृश्य बेहद रोमांचक और भक्तिमय होता है.
भक्तों का अद्वितीय प्रेम और वापसी का स्वागत
बाहुड़ा यात्रा में भक्तों का उत्साह अद्वितीय होता है. वे भगवान को वापस अपने धाम आता देख भाव-विभोर हो जाते हैं. नाचते-गाते, ढोल-नगाड़ों की थाप पर भक्त रथों के साथ चलते हैं. यह उत्सव परिवार के मुखिया की घर वापसी के समान है, जहाँ हर कोई उनका स्वागत करने के लिए उत्साहित होता है. इस दिन मंदिर परिसर में महाप्रसाद का वितरण भी होता है, जो भक्तों की सेवा और भगवान के आशीर्वाद का प्रतीक है. सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता रहती है ताकि उत्सव शांतिपूर्ण रहे.
बाहुड़ा यात्रा का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
यह वापसी यात्रा केवल एक रस्म नहीं, बल्कि कई गहरे संदेश लिए हुए है:
- मिलन और आनंद: यह भक्तों और भगवान के बीच के विरह के बाद मिलन का पर्व है. यह भक्तों को अपार खुशी और संतोष प्रदान करता है.
- संतुलन का संदेश: यह जीवन में आगे बढ़ने और अपनी जड़ों से जुड़े रहने के बीच संतुलन का महत्व सिखाता है. हर यात्रा का एक अंत होता है, और हर प्रस्थान के बाद घर वापसी होती है.
- पुण्य की प्राप्ति: रथ को खींचने में शामिल होना भक्तों के लिए महान पुण्य का कार्य माना जाता है. यह उन्हें भगवान की सेवा करने का सीधा अवसर देता है.
- सांस्कृतिक एकता: यह दिल्ली में विभिन्न समुदायों को एक साथ लाता है. वे एक साझा आस्था के धागे से जुड़कर इस पर्व को मनाते हैं, जिससे सांस्कृतिक एकता मजबूत होती है.
- लीला का पूर्ण होना: यह भगवान जगन्नाथ की वार्षिक लीला चक्र को पूर्ण करता है, जिससे भक्त अगले वर्ष के उत्सव की प्रतीक्षा में रहते हैं.
निष्कर्ष
बाहुड़ा यात्रा 2025 त्यागराज नगर में केवल रथों की वापसी नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की अपने भक्तों के हृदय में घर वापसी का उत्सव है. यह पर्व दर्शाता है कि प्रेम और आस्था का कोई अंत नहीं होता, और भगवान हमेशा अपने भक्तों के साथ रहते हैं. दिल्ली का श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी की इस अनूठी परंपरा को जीवंत रखकर, राजधानी के लोगों को इस दिव्य अनुभव का भागीदार बनने का अवसर देता है. यह उत्सव हमें अपने मूल से जुड़ने, वापसी के आनंद को महसूस करने और भगवान के शाश्वत प्रेम में डूबने की प्रेरणा देता है. इस 05 जुलाई को, आप भी इस पावन ‘घर वापसी’ यात्रा का हिस्सा बनें और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करें.
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📍 स्थान: श्री जगन्नाथ मंदिर, त्यागराज नगर, नई दिल्ली
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मंदिर के बारे में जानें – सबसे ज़्यादा पूछे गए सवाल (FAQs)
बाहुड़ा’ का अर्थ है ‘वापसी’ यह रथ यात्रा उत्सव का समापन है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा नौ दिनों के प्रवास के बाद मौसी माँ गुंडिचा मंदिर से अपने मुख्य मंदिर (श्री मंदिर) वापस लौटते हैं. 2025 में, बाहुड़ा यात्रा 05 जुलाई को मनाई जाएगी.
मुख्य रथ यात्रा में देवता गुंडिचा मंदिर की ओर जाते हैं, जबकि बाहुड़ा यात्रा में वे ठीक विपरीत दिशा में अपने मुख्य धाम की ओर लौटते हैं. दोनों ही यात्राएँ भव्य और महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन बाहुड़ा यात्रा ‘घर वापसी’ का प्रतीक है.
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा मुख्य रथ यात्रा के बाद नौ दिनों तक अपनी मौसी माँ गुंडिचा के मंदिर में प्रवास करते हैं.
यह यात्रा भक्तों और भगवान के बीच विरह के बाद मिलन का प्रतीक है, जो अपार खुशी और संतोष देता है. यह जीवन में संतुलन, जड़ों से जुड़े रहने और हर यात्रा के बाद घर वापसी के महत्व का संदेश भी देती है.
जी हाँ, मुख्य रथ यात्रा की तरह, बाहुड़ा यात्रा में भी हजारों भक्त रस्सियों को खींचकर रथों को आगे बढ़ाते हैं. रथ खींचना एक महान पुण्य का कार्य माना जाता है और यह भगवान की सेवा करने का सीधा अवसर है.
त्यागराज नगर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी की परंपराओं का पालन करता है. यहाँ भी भगवान को पहांडी विधि से रथों तक लाया जाता है. भक्त उत्साहपूर्वक रथ खींचते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और महाप्रसाद वितरित किया जाता है. सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होते हैं.