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माँ कूष्मांडा की कथा एवं आरती

माँ कूष्मांडा नवरात्रि के चौथे दिन पूजित होने वाली देवी हैं। इन्हें ब्रह्मांड की सृजनकर्ता माना जाता है। अपने हल्के हास्य से उन्होंने पूरे ब्रह्मांड की रचना की, इसलिए इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है।


पौराणिक कथा

जब सृष्टि नहीं थी, चारों ओर अंधकार व्याप्त था, तब माँ कूष्मांडा ने अपने दिव्य तेज से ब्रह्मांड की रचना की। वे सूर्य के भीतर निवास करने वाली शक्ति हैं और उन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है। इन्हीं के तेज से सूर्य मंडल प्रकाशित होता है।


माँ कूष्मांडा का स्वरूप

इनके आठ हाथ हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। इनके हाथों में धनुष, बाण, कमंडल, चक्र, गदा, अमृत कलश, जप माला और कमल सुशोभित रहते हैं। वे सिंह पर विराजमान रहती हैं और भक्तों को आरोग्य, समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करती हैं।


माँ कूष्मांडा की पूजा का महत्व

इनकी उपासना से स्वास्थ्य, दीर्घायु, समृद्धि, और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। माँ कूष्मांडा की कृपा से भक्तों के सारे रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं।

मंत्र

“ॐ देवी कूष्मांडायै नमः”


माँ कूष्मांडा की आरती

जय कूष्मांडा माता, जय जग की जननी।
सुख सम्पत्ति दायिनी, दीनन की भवानी॥

तेरी ज्योति से सारा जग उजियारा।
तुम बिन कोई भी नहीं है सहारा॥

जो भी तेरा ध्यान लगाए,
सभी बिगड़े काज बनाए॥

तेरे भक्तों की तू रखवाली।
करती है माँ तू भंडारी॥

तेरा नाम जो भी जपता है।
माँ उसकी नैया पार होता है॥

कृपा करो मुझ पर दयामयी।
सर्वसिद्धि दो वरदायिनी॥

जय कूष्मांडा माता, जय जग की जननी।
सुख सम्पत्ति दायिनी, दीनन की भवानी॥


माँ कूष्मांडा की कृपा से सभी भक्तों को आरोग्य, ऐश्वर्य, और आनंद प्राप्त हो।
🙏 जय माता दी! 🙏

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