भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी की कथा (संक्षेप में)
JAGANNATH MANDIR, TYAGRAJ NAGAR DELHI
भगवान श्री जगन्नाथ जी को विष्णु जी का अवतार माना जाता है। उनकी मूर्ति पुरी (ओडिशा) के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में स्थित है, जो चार धामों में से एक है। आइए जानते हैं उनकी पावन कथा:
🌸 जगन्नाथ स्वामी की उत्पत्ति कथा:
प्राचीन काल में मालवा देश में एक राजा थे, जिनका नाम इंद्रद्युम्न था। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और एक दिन उन्होंने स्वप्न में देखा कि भगवान नीलमाधव एक गुफा में निवास करते हैं। उन्होंने अपने दूत विद्यापति को उन्हें ढूँढने भेजा।
विद्यापति को भगवान नीलमाधव (जो विष्णु जी का रूप थे) एक शबर (वनवासी) परिवार में दर्शन हुए। राजा इंद्रद्युम्न जब वहाँ पहुँचे, तब तक नीलमाधव अंतर्ध्यान हो चुके थे। लेकिन उन्हें आकाशवाणी हुई कि भगवान एक विशेष रूप में प्रकट होंगे।
🌳 नीम की लकड़ी से मूर्ति निर्माण:
एक दिन समुद्र के किनारे एक रहस्यमय विशाल काष्ठदंड (नीम की लकड़ी) बहकर आया। आकाशवाणी हुई कि इसी से भगवान की मूर्ति बनानी है। तब एक वृद्ध कारीगर (स्वयं भगवान विष्णु) मूर्तियाँ बनाने के लिए आया। उसने शर्त रखी कि जब तक वह कक्ष से बाहर न आए, कोई अंदर न देखे।
राजा ने यह स्वीकार कर लिया, लेकिन 21 दिन बाद कारीगर बाहर नहीं आया, तो रानी ने चिंता में दरवाजा खुलवा दिया। तभी वृद्ध अदृश्य हो गया और अधूरी मूर्तियाँ सामने थीं—भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की। इन्हीं अधूरी मूर्तियों की पूजा आज भी की जाती है।
🚩 जगन्नाथ जी के स्वरूप की विशेषता:
भगवान जगन्नाथ के हाथ-पैर नहीं हैं, आँखें बड़ी और गोल हैं।
बलभद्र (शेषनाग स्वरूप) उनके दाहिने और सुभद्रा बीच में स्थित हैं।
यह स्वरूप संसार के प्रति उनकी सहज करुणा और समर्पण का प्रतीक है।
🛕 पुरी रथ यात्रा की कथा:
हर साल आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इसे रथ यात्रा कहा जाता है, जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं। यह यात्रा 9 दिन की होती है और फिर वे वापस आते हैं।
🙏 जगन्नाथ का अर्थ:
“जग” यानी संसार और “नाथ” यानी स्वामी — जगन्नाथ का अर्थ है संपूर्ण जगत के स्वामी।
🌸 श्री जगन्नाथ स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे
(श्री जगन्नाथ जी को समर्पित लोकप्रिय भजन)
श्री जगन्नाथ स्वामी,
नयन-पथ-गामी भवतु मे।
श्री जगन्नाथ स्वामी,
नयन-पथ-गामी भवतु मे।।
बलभद्र सुभद्रा संग,
सिंहासन पर शोभित अंग।
नीलाचल में वास तुम्हारा,
जग के पालनहार तुम्हारा।।
श्री जगन्नाथ स्वामी,
नयन-पथ-गामी भवतु मे।।
रथ पे चढ़ के करते सवारी,
हरते सबकी दुख की बारी।
भक्तों के तुम हो दुलारे,
दर्शन मात्र से दुख हारे।।
श्री जगन्नाथ स्वामी,
नयन-पथ-गामी भवतु मे।।
हे कृष्ण राधा के प्यारे,
दीनों के तुम रखवाले।
मुरलीधर मधुसूदन प्यारे,
हर दिल में हो तेरे सहारे।।
श्री जगन्नाथ स्वामी,
नयन-पथ-गामी भवतु मे।।