श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की कहानी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व है, जो भारत और दुनिया भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। उनकी जन्मकथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है।

कंस का अत्याचार:

मथुरा नगरी के राजा उग्रसेन का पुत्र कंस बहुत ही अत्याचारी और निर्दयी था। उसने अपने ही पिता को बंदी बनाकर मथुरा का राजपाट अपने हाथ में ले लिया। कंस की बहन देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ था। विवाह के बाद जब कंस देवकी और वासुदेव को उनके घर छोड़ने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। यह सुनकर कंस क्रोधित हो गया और उसने देवकी को मारने का फैसला किया, लेकिन वासुदेव ने उसे समझाया और वचन दिया कि वे देवकी के सभी संतानें उसे सौंप देंगे।

भगवान कृष्ण का जन्म:

कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके सभी बच्चों को मार दिया। जब देवकी गर्भवती हुईं और उनकी आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब कंस ने सुरक्षा कड़ी कर दी। भगवान विष्णु ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। उनके जन्म के समय कारागार के ताले खुल गए, पहरेदार सो गए, और एक दिव्य आवाज़ ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे नवजात बालक को गोकुल ले जाकर नंद और यशोदा को सौंप दें।

गोकुल में बालकृष्ण:

वासुदेव ने भगवान श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा को सौंप दिया और वापस आकर कंस को देवकी के आठवें पुत्र के रूप में यशोदा की बेटी सौंप दी। कंस ने उसे मारने की कोशिश की, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और भविष्यवाणी की कि उसका विनाश करने वाला जन्म ले चुका है। गोकुल में श्रीकृष्ण का लालन-पालन नंद और यशोदा ने किया, जहां उन्होंने अपने बाल्यकाल में कई चमत्कार किए।

कंस का वध:

भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े होकर कंस का वध किया और मथुरा को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों की रक्षा की और धर्म की स्थापना की।

निष्कर्ष:

जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनके द्वारा किए गए चमत्कारों की याद दिलाता है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि अधर्म और अत्याचार का अंत निश्चित है और धर्म की हमेशा विजय होती है। इस पर्व पर भक्तजन उपवास रखते हैं, मन्दिरों में झांकियां सजाई जाती हैं, और रातभर भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान किया जाता है।

 

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