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Festival and Rituals

माँ सिद्धिदात्री Day 9 Siddhidatri 11 October, 2024
Shri Jagannath Mandir & OACC

माँ सिद्धिदात्री Day 9 Siddhidatri 11 October, 2024

माँ सिद्धिदात्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में नौवां और अंतिम स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के नवें दिन की जाती है। माँ सिद्धिदात्री को सिद्धियों की दात्री माना जाता है, जो अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों, आशीर्वाद, और समृद्धि प्रदान करती हैं। उनका यह स्वरूप शक्ति, ज्ञान और सम्पूर्णता का प्रतीक है। पौराणिक महत्व: माँ सिद्धिदात्री की पूजा और महत्व के बारे में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि माँ सिद्धिदात्री का जन्म तब हुआ जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। इस प्रकार, माँ सिद्धिदात्री को देवी पार्वती का एक रूप भी माना जाता है। कथा के अनुसार, जब देवताओं को महाबली दानवों से भय था, तब उन्होंने माँ सिद्धिदात्री की आराधना की। माँ ने अपनी अद्भुत शक्तियों से उन्हें संरक्षण दिया और सभी बुराइयों का नाश किया। माँ सिद्धिदात्री की कृपा से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ, जैसे कि आध्यात्मिक ज्ञान, धन, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। स्वरूप: माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य और आकर्षक होता है। उनके विशेषताएँ इस प्रकार हैं: रंग: माँ का रंग सफेद है, जो पवित्रता और शांति का प्रतीक है। हाथ: उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें से एक हाथ में

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माँ महागौरी Day 8 Mahagauri 10 October, 2024
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माँ महागौरी Day 8 Mahagauri 10 October, 2024

माँ महागौरी देवी दुर्गा के नौ रूपों में आठवां स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है। माँ महागौरी का नाम उनके अद्वितीय और अत्यंत गोरे स्वरूप के कारण पड़ा। वह शांति, सौंदर्य और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती हैं। माँ महागौरी का यह रूप अपने भक्तों को दुखों, पापों और बुराइयों से मुक्त करके उन्हें सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद प्रदान करता है। पौराणिक महत्व: पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ महागौरी का जन्म भगवान शिव की पत्नी पार्वती के रूप में हुआ था। एक बार, उन्होंने कठोर तपस्या की, जिससे उनका रंग काला हो गया। अपनी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें गंगाजल से स्नान कराया, जिससे उनका रंग अत्यंत गोरा हो गया। इस प्रकार, वह “महागौरी” कहलाने लगीं। माँ महागौरी को ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के समकक्ष माना जाता है। उनकी कृपा से भक्तों को जीवन में सभी बाधाओं और कष्टों से मुक्ति मिलती है। उनकी उपासना से शक्ति, साहस, और संतोष की प्राप्ति होती है। स्वरूप: माँ महागौरी का स्वरूप दिव्य और करुणामय होता है। उनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं: रंग: माँ का रंग अत्यंत सफेद और चमकदार है, जो पवित्रता का प्रतीक है। हाथ: उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें

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माँ कालरात्रि Day 7 Kalaratri 09 October, 2024
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माँ कालरात्रि Day 7 Kalaratri 09 October, 2024

माँ कालरात्रि देवी दुर्गा के नौ रूपों में सातवां स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। “कालरात्रि” नाम का अर्थ है “काल” (समय) और “रात्रि” (रात)। माँ कालरात्रि को अंधकार और मृत्यु के रूप में पूजा जाता है। उनका यह स्वरूप भय, संकट और नकारात्मकताओं का नाश करता है। माँ कालरात्रि का चित्रण अत्यंत दिव्य और शक्तिशाली रूप में किया जाता है, जिसमें वे अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं को समाप्त करती हैं। माँ कालरात्रि का पौराणिक महत्व: माँ कालरात्रि की उत्पत्ति तब हुई जब देवी दुर्गा ने दुष्ट राक्षसों का नाश करने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग किया। विशेष रूप से, यह माना जाता है कि माँ कालरात्रि ने राक्षस राजा रुद्रासुर का वध किया था, जिसने सृष्टि में आतंक फैलाया था। देवी ने अपनी तेजस्विता और शक्तियों से रुद्रासुर को पराजित किया और समस्त संसार को उसके आतंक से मुक्त किया। उनका यह स्वरूप उन भक्तों के लिए आश्रय है, जो भय और संकट से जूझ रहे हैं। माँ कालरात्रि का स्वरूप: माँ कालरात्रि का रूप अत्यंत भव्य और शक्तिशाली है। उनका शरीर काला है, जो अंधकार का प्रतीक है। उनकी तीन आँखें हैं, जो सभी दिशाओं को देखती हैं। उनके

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माँ कात्यायनी Day 6 Katyayani 08 October, 2024
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माँ कात्यायनी Day 6 Katyayani 08 October, 2024

माँ कात्यायनी देवी दुर्गा के नौ रूपों में छठा स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। माँ कात्यायनी को शक्ति और वीरता का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि कात्यायन ने देवी भगवती की कठिन तपस्या की थी और उनकी इच्छा थी कि देवी उनके घर में जन्म लें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया, जिसके कारण उन्हें “कात्यायनी” नाम दिया गया। माँ कात्यायनी को युद्ध की देवी माना जाता है, जो दुष्टों का नाश करती हैं और अपने भक्तों की हर प्रकार की बाधाओं से रक्षा करती हैं। उनका यह रूप शौर्य, साहस, और विजय का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि माँ कात्यायनी दुष्टों और अत्याचारियों का अंत करने वाली हैं। माँ कात्यायनी का पौराणिक महत्व: माँ कात्यायनी का जन्म महिषासुर जैसे दुष्ट राक्षसों का वध करने के लिए हुआ था। महिषासुर ने अपने अत्याचार से पूरे संसार को त्रस्त कर रखा था। तब सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर माँ कात्यायनी की रचना की, जिन्होंने महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्त किया। इस प्रकार, माँ कात्यायनी महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी विख्यात हैं। माँ कात्यायनी का स्वरूप

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माँ स्कंदमाता Day 5 Skandamata 07 October, 2024
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माँ स्कंदमाता Day 5 Skandamata 07 October, 2024

माँ स्कंदमाता देवी दुर्गा के नौ रूपों में पाँचवां स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के पाँचवें दिन की जाती है। “स्कंदमाता” का अर्थ है स्कंद (भगवान कार्तिकेय) की माता। स्कंदमाता को मातृत्व और ममता का प्रतीक माना जाता है। उनके पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) युद्ध और शक्ति के देवता हैं, जिन्हें देवताओं का सेनापति माना जाता है। माँ स्कंदमाता का यह रूप प्रेम, करुणा, और वात्सल्य से भरा हुआ है, लेकिन साथ ही वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए अत्यंत शक्तिशाली और क्रोधित रूप धारण करने में सक्षम हैं। माँ स्कंदमाता का पौराणिक महत्व: माँ स्कंदमाता की पौराणिक कथा के अनुसार, उन्होंने अपने पुत्र स्कंद को असुरों के अत्याचार से रक्षा करने के लिए देवताओं की सेना का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया। भगवान स्कंद ने तारकासुर जैसे राक्षसों का वध किया और देवताओं को विजय दिलाई। माँ स्कंदमाता को इस रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों की हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करती हैं और उन्हें अपनी ममता की छाया में आश्रय देती हैं। माँ स्कंदमाता सिंह पर सवार होती हैं और उनकी गोद में बालक स्कंद (कार्तिकेय) विराजमान होते हैं। उनके चार हाथ होते हैं: दो हाथों में कमल के पुष्प होते हैं,

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माँ कूष्मांडा Day 4 Kushmanda 06 October, 2024
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माँ कूष्मांडा Day 4 Kushmanda 06 October, 2024

माँ कूष्मांडा देवी दुर्गा के नौ रूपों में चौथा स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। “कूष्मांडा” शब्द का अर्थ है “कुम्हड़ा” (एक प्रकार का फल) और “अंडा” का अर्थ है ब्रह्मांड, जो दर्शाता है कि देवी ने ब्रह्मांड की रचना की है। माँ कूष्मांडा को सृष्टि की आदिशक्ति माना जाता है, जिन्होंने अपने हल्के से मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। माँ कूष्मांडा का पौराणिक महत्व: माँ कूष्मांडा की उत्पत्ति तब हुई जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार फैला हुआ था और कहीं कोई जीवन या प्रकाश नहीं था। ऐसी स्थिति में देवी ने अपने अलौकिक तेज और मुस्कान से ब्रह्मांड का निर्माण किया। यह भी माना जाता है कि सृष्टि की रचना के समय देवी ने सूर्य मंडल के बीच अपने निवास का स्थान बनाया और उनके तेज से ही सूर्य का प्रकाश फैला। उनकी आठ भुजाएँ हैं, जिसके कारण उन्हें “अष्टभुजा” देवी भी कहा जाता है। उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला होती है। माँ सिंह पर सवार रहती हैं और उनका यह रूप भक्तों को जीवन में नई ऊर्जा, शक्ति और सकारात्मकता प्रदान करता है। माँ कूष्मांडा का स्वरूप: माँ कूष्मांडा का स्वरूप अत्यंत

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Day 3 Chandraghanta 05 October, 2024
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माँ चंद्रघंटा – Day 3 Chandraghanta 05 October, 2024

Day 3 Chandraghanta 05 October, 2024माँ चंद्रघंटा देवी दुर्गा के नौ रूपों में तीसरा स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। चंद्रघंटा देवी का यह रूप शक्ति, वीरता और सौम्यता का प्रतीक है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है, जिसके कारण उनका नाम “चंद्रघंटा” पड़ा। उनका यह रूप शांत होते हुए भी युद्ध और दुष्टों के नाश के लिए तत्पर रहता है। माँ चंद्रघंटा का पौराणिक महत्व: माँ चंद्रघंटा की पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया, तो उन्होंने अपने इस दिव्य और युद्धप्रिय स्वरूप को प्रकट किया था। विवाह के समय भगवान शिव साधुओं, भूत-प्रेतों और अन्य विचित्र प्राणियों के साथ अपनी बारात में आए थे, जिन्हें देखकर देवी पार्वती की माता व्याकुल हो गईं। तब देवी पार्वती ने माँ चंद्रघंटा के रूप को धारण कर शिव और उनके साथियों को शांत और सुंदर रूप में प्रकट किया। इसके साथ ही देवी चंद्रघंटा ने शिव के क्रोधित रूप को भी शांत किया। उनका यह रूप सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाला है और शांति तथा सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप: माँ चंद्रघंटा का रूप अत्यंत दिव्य और

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Day 2 Brahmacharini
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माँ ब्रह्मचारिणी – Day 2 Brahmacharini

माँ ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा के नौ रूपों में दूसरा स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। “ब्रह्मचारिणी” का अर्थ है तपस्या या ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली, और इस रूप में देवी को कठोर तपस्या का प्रतीक माना जाता है। ब्रह्मचारिणी देवी का यह स्वरूप सादगी, संयम और भक्ति का प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि तपस्या और त्याग से जीवन में उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। माँ ब्रह्मचारिणी का पौराणिक महत्व: माँ ब्रह्मचारिणी का जन्म राजा हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठोर तपस्या के दौरान, उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल-फूल और बाद में सूखी पत्तियों का ही सेवन किया। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि वे वर्षों तक बिना भोजन और जल के रही थीं। अंत में, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसी कारण उन्हें “ब्रह्मचारिणी” नाम से पूजा जाता है, जो तप, संयम और साधना का सर्वोच्च उदाहरण है। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप: माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत शांति और शक्ति का प्रतीक है। वे

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Shailaputri
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शैलपुत्री – Day 1 Shailaputri 03 October, 2024

शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम स्वरूप हैं, जिन्हें नवरात्रि के पहले दिन पूजा जाता है। उनका नाम “शैलपुत्री” इस तथ्य को दर्शाता है कि वह पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। शैलपुत्री का स्वरूप शांत, शालीन और शक्तिशाली है, और वे नंदी नामक बैल पर सवार हैं। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है, जो उनके साहस, शांति और सौम्यता का प्रतीक है। यह माना जाता है कि शैलपुत्री देवी ही सती और पार्वती के रूप में अवतरित हुई थीं। शैलपुत्री का पौराणिक महत्व: शैलपुत्री देवी का जन्म हिमालय पर्वत के घर हुआ था, इसलिए उन्हें “पर्वत की पुत्री” कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व जन्म में शैलपुत्री देवी, राजा दक्ष की पुत्री सती थीं, जिन्होंने अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न कर आत्मदाह कर लिया था। अगले जन्म में उन्होंने हिमालय के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। इस प्रकार शैलपुत्री का जीवन समर्पण, शक्ति, और दिव्यता का प्रतीक है। पूजा विधि: नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री देवी की पूजा की जाती है। यह दिन नवरात्रि का प्रारंभिक

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Nabadina Puja Aarambha

Nabadina Puja Aarambha refers to the commencement of the nine-day long Puja (worship) associated with Lord Jagannath, which is observed with great devotion and rituals at various Jagannath Temples, particularly in Puri, Odisha. Here’s an overview of what Nabadina Puja Aarambha entails: Meaning and Significance Nabadina: In Odia, “Naba” means nine, and “Dina” means days. Hence, Nabadina refers to a period of nine days. Puja Aarambha: This phrase translates to the beginning or commencement of the worship rituals. Rituals and Observances Preparations: Before the commencement of Nabadina Puja, elaborate preparations are made at the Jagannath Temple. The temple premises are cleaned and decorated beautifully. Invocation: The priests perform special rituals and invocations (Avahana) to invite the divine presence of Lord Jagannath, Lord Balabhadra, and Goddess Subhadra into the sanctum sanctorum of the temple. Daily Worship: Throughout the nine days of Nabadina Puja, the deities are worshipped with various offerings such as flowers, fruits, sweets, and incense. Special prayers and hymns are recited by the priests to seek blessings for devotees and the community. Devotee Participation: Devotees visit the temple in large numbers to witness the rituals and offer their prayers during this auspicious period. They seek blessings and spiritual fulfillment

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Chaitra Amabasya

Chaitra Amavasya Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Chaitra Amavasya, the new moon day in the Hindu month of Chaitra, is a significant occasion for spiritual and religious activities. It is a day for honoring ancestors, performing purification rituals, and seeking blessings for prosperity and well-being. At Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi, Chaitra Amavasya is observed with deep devotion and various traditional rituals. Significance of Chaitra Amavasya: Amavasya, or the new moon day, is considered an auspicious time for performing rituals aimed at appeasing ancestors and seeking their blessings. Chaitra Amavasya holds special importance as it falls during the first month of the Hindu lunar calendar, symbolizing new beginnings, spiritual cleansing, and the renewal of energy. Preparations and Decorations: The preparations for Chaitra Amavasya at Shri Jagannath Mandir begin well in advance. The temple is thoroughly cleaned and adorned with fresh flowers, rangoli designs, and lights. The serene and sacred environment sets the stage for the day’s rituals and ceremonies. Ancestral Worship (Pitru Tarpan): One of the main rituals of Chaitra Amavasya is Pitru Tarpan, where devotees offer water, sesame seeds, and rice to their ancestors. This ritual is performed on the banks of rivers, or

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Papamochani Ekadashi

Papamochani Ekadashi Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Papamochani Ekadashi is a significant Hindu observance dedicated to Lord Vishnu, believed to absolve devotees of their sins and lead them towards spiritual liberation. Celebrated on the 11th day of the Krishna Paksha (waning phase of the moon) in the month of Chaitra, this Ekadashi holds a special place in the hearts of devotees at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. Significance of Papamochani Ekadashi: Papamochani Ekadashi, meaning “the remover of sins,” is considered highly auspicious for cleansing one’s past misdeeds and achieving spiritual growth. According to Hindu scriptures, observing fast and performing rituals on this day can help devotees rid themselves of accumulated sins and attain moksha (liberation from the cycle of birth and death). Preparations and Decorations: Preparations for Papamochani Ekadashi at Shri Jagannath Mandir begin well in advance. The temple is thoroughly cleaned and beautifully decorated with flowers, lights, and rangoli designs, creating a serene and divine ambiance. Devotees gather in large numbers to participate in the rituals and seek the blessings of Lord Jagannath. Fasting and Devotional Practices: Fasting is a core aspect of Papamochani Ekadashi. Devotees observe a strict fast, abstaining from grains, cereals,

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Dola Purnima, Mina Sankranti

Dola Purnima and Mina Sankranti Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Dola Purnima: Dola Purnima, also known as Holi Purnima, is a significant festival celebrated in the month of Phalguna, coinciding with the full moon day. It marks the beginning of the Holi festival and is dedicated to the worship of Lord Krishna and Radha. The celebration is filled with devotion, rituals, and joyous activities at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. Significance of Dola Purnima: Dola Purnima celebrates the divine love of Radha and Krishna and the arrival of spring. It symbolizes joy, love, and the victory of good over evil. The festival also holds importance for farmers as it marks the end of the Rabi crop season and the beginning of the harvest. Preparations and Decorations: The preparations for Dola Purnima at Shri Jagannath Mandir begin days in advance. The temple is adorned with colorful decorations, flowers, and lights. Rangoli designs are made at the entrance, adding to the festive atmosphere. The idols of Lord Jagannath, Balabhadra, and Subhadra are beautifully dressed in vibrant attire and adorned with flowers. Rituals and Ceremonies: Morning Puja: The day begins with special puja and abhisheka (ritualistic bathing) of

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Holika Dahan

Holika Dahan Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Holika Dahan, also known as Chhoti Holi, is an important Hindu festival celebrated on the full moon night of the Phalguna month, marking the beginning of the festival of colors, Holi. It symbolizes the triumph of good over evil and is celebrated with immense zeal and devotion at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. Significance of Holika Dahan: Holika Dahan commemorates the story of Prahlada, a devoted follower of Lord Vishnu, and his evil aunt Holika. According to Hindu mythology, Holika tried to burn Prahlada in a fire, but due to his unwavering devotion to Lord Vishnu, Prahlada emerged unscathed while Holika was destroyed. This event signifies the victory of righteousness and devotion over malice and evil. Preparations and Decorations: The preparations for Holika Dahan at Shri Jagannath Mandir begin well in advance. The temple premises and surrounding areas are cleaned and decorated with colorful lights, flowers, and rangoli designs. A large pyre is constructed using wood, dried leaves, and other combustible materials, symbolizing Holika’s effigy. Rituals and Ceremonies: Evening Puja: The Holika Dahan celebrations start with a special evening puja. Devotees gather around the pyre, and priests perform

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Papanasini Ekadashi

Papanasini Ekadashi Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Papanasini Ekadashi, also known as the “Ekadashi that destroys sins,” is a highly significant observance in the Hindu calendar, dedicated to Lord Vishnu. Falling on the 11th day of the Krishna Paksha (waning phase of the moon) in the month of Chaitra, this sacred day is celebrated with great reverence and devotion at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. Significance of Papanasini Ekadashi: Papanasini Ekadashi holds immense spiritual importance as it is believed to absolve devotees of their past sins and grant them peace, prosperity, and spiritual liberation. According to Hindu mythology, observing fast and performing rituals on this day can help in attaining moksha (liberation from the cycle of birth and death). Preparations and Decorations: The preparations for Papanasini Ekadashi at Shri Jagannath Mandir begin well in advance. The temple premises are cleaned and decorated with flowers, garlands, and lights, creating a serene and divine atmosphere. Devotees gather in large numbers to participate in the special rituals and seek the blessings of Lord Jagannath. Fasting and Devotional Practices: Fasting is a core aspect of Papanasini Ekadashi. Devotees observe a strict fast, refraining from consuming grains, cereals, and certain

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Fagudasami

Fagudasami Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Fagudasami, also known as Phalgun Shukla Dashami, is a vibrant and joyful festival that marks the arrival of spring and is celebrated with great enthusiasm at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. This festival falls on the tenth day of the Shukla Paksha (waxing phase of the moon) in the month of Phalguna, coinciding with the festive spirit of Holi. Significance of Fagudasami: Fagudasami is associated with the joyous celebration of colors and the triumph of good over evil. It marks the beginning of the Holi festival and is dedicated to Lord Krishna, who is known for his playful and mischievous nature. The festival symbolizes the end of winter and the arrival of spring, bringing with it a sense of renewal, hope, and happiness. Preparations and Decorations: The preparations for Fagudasami at Shri Jagannath Mandir begin days in advance. The temple is adorned with colorful flowers, lights, and festive decorations. Rangoli designs in vibrant hues are created at the entrance and within the temple premises, adding to the celebratory ambiance. Rituals and Ceremonies: Morning Puja: The day starts with a special morning puja dedicated to Lord Jagannath, Lord Krishna, and

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Amavasya

Amavasya Celebrations at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Amavasya, or the New Moon day, holds a special place in the Hindu calendar and is observed with various rituals and customs at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. This day, when the moon is not visible in the night sky, is considered both powerful and significant for spiritual practices, ancestral worship, and the dispelling of negative energies. Significance of Amavasya: Amavasya is regarded as an auspicious time for performing rituals and offering prayers to departed ancestors (Pitru Tarpan) to ensure their peace and to seek their blessings. It is also a day for conducting various spiritual practices to cleanse oneself of negative energies and start afresh. Many devotees observe fasts and engage in charitable activities, believing that their acts of piety and devotion are magnified on this day. Preparations and Rituals: At Shri Jagannath Mandir, the preparations for Amavasya begin with thorough cleaning and decoration of the temple premises. The temple is adorned with fresh flowers and rangoli designs, creating an inviting and sacred atmosphere. Pitru Tarpan and Ancestral Worship: One of the main rituals observed on Amavasya is Pitru Tarpan, where devotees offer water, sesame seeds, and rice

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Mahashivaratri (Jagara)

Mahashivaratri (Jagara) Celebration at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Mahashivaratri, also known as Jagara, is one of the most significant festivals dedicated to Lord Shiva, the destroyer and transformer among the Hindu Trinity. This auspicious night is celebrated with great devotion and fervor at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi, drawing devotees from all over the city to participate in the sacred rituals and ceremonies. Significance of Mahashivaratri: Mahashivaratri, which translates to “The Great Night of Shiva,” falls on the 14th night of the dark fortnight in the month of Phalguna (February-March). It is believed to be the night when Lord Shiva performed the Tandava, his cosmic dance of creation, preservation, and destruction. Devotees also believe that on this night, Lord Shiva married Goddess Parvati, making it a highly auspicious and spiritually potent occasion. Preparations and Decorations: The preparations for Mahashivaratri at Shri Jagannath Mandir begin days in advance. The temple is adorned with flowers, garlands, and decorative lights, creating a divine and festive ambiance. Elaborate rangoli designs are made at the entrance and within the temple premises, welcoming devotees to partake in the celebrations. Rituals and Ceremonies: The celebrations commence with the traditional morning rituals, including the

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Pankodhara Ekadashi

Celebration of Pankodhara Ekadashi at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Pankodhara Ekadashi, also known as Kamada Ekadashi, is a significant observance in the Hindu calendar dedicated to Lord Vishnu. Falling on the eleventh day (Ekadashi) of the Krishna Paksha (waning phase of the moon) in the month of Chaitra, this Ekadashi is celebrated with immense devotion at Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi. The name “Pankodhara” is derived from the belief that observing this Ekadashi helps in cleansing one’s sins and removing obstacles, much like removing mud (pank) from one’s life. Significance of Pankodhara Ekadashi: Pankodhara Ekadashi is believed to free devotees from the consequences of their past misdeeds and grant them prosperity and spiritual growth. According to Hindu mythology, Lord Vishnu himself narrated the significance of this Ekadashi to King Yudhishthira in the Mahabharata, emphasizing its power to absolve sins and bestow blessings. Preparations and Rituals: The preparations for Pankodhara Ekadashi at Shri Jagannath Mandir start well in advance. The temple is thoroughly cleaned and adorned with flowers, garlands, and lights. Devotees from all over Delhi visit the temple, eager to participate in the special rituals and seek the blessings of Lord Jagannath. Fasting and Devotional Practices:

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Magha Purnima, Agniutsab, Kumbha Sankranti

Celebrations of Magha Purnima, Agniutsab, and Kumbha Sankranti at Shri Jagannath Mandir, Thyagraj Nagar, Delhi Shri Jagannath Mandir in Thyagraj Nagar, Delhi, is a hub of spiritual and cultural activities throughout the year. Among the many auspicious events celebrated, Magha Purnima, Agniutsab, and Kumbha Sankranti hold a special place in the hearts of devotees. These festivals are marked by unique rituals, deep devotion, and vibrant festivities. Magha Purnima Significance: Magha Purnima, the full moon day in the month of Magha (January-February), is considered highly auspicious in Hinduism. It marks the end of the Magha month and is associated with the worship of Lord Vishnu and Goddess Lakshmi. Bathing in sacred rivers on this day is believed to cleanse sins and bring prosperity. Celebrations and Rituals: At Shri Jagannath Mandir, the day begins with an early morning Mangala Aarti, followed by a special abhisheka (ritual bathing) of the deities with holy water, milk, honey, and other sacred substances. The temple is adorned with beautiful flowers, lights, and rangoli designs. Devotees gather in large numbers to offer prayers and seek blessings. A significant ritual involves taking a holy dip in the nearby sacred water body, if available, or symbolically performing the ritual

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